ये सफेदी शामियाने बन न जाऐं दुःकफन,
इन घुमड़ते वादलों को कर न देना तुम दफन,
चिर आग जो धधकती रह रही तुम्हारे मन में है
ज्वार बनकर फूटने दो या बरसने दो ए प्रिये.
लेखक एक भारत का आम नागरिक है जिसने कई मंत्री के निजी स्टाफ में काम किया है तथा वर्तमान में भी मध्यप्रदेश के राज्यमंत्री के निजी स्टाफ में कार्यरत है।