वट वृक्ष है वो जिसकी जड़ें आफिस दुकान खेत खलिहान तक फैली हैं
रहते हैं इसकी छांव में
कोई भय त्रास नहीं रहता
इसकी जडें हैं बहूत फैली
खीच ही लातीं हैं रस
जो देता है सरणागत् को पनाह
पतझड़ में झड़ जाते हैं पत्ते
फिर भी उस समय की मार को झेलकर
करता है
फिर तैयारी
वही छांव देने की
नई कोमल पत्तियां लाकर
रहते हैं इसकी छांव में
कोई भय त्रास नहीं रहता
इसकी जडें हैं बहूत फैली
खीच ही लातीं हैं रस
जो देता है सरणागत् को पनाह
पतझड़ में झड़ जाते हैं पत्ते
फिर भी उस समय की मार को झेलकर
करता है
फिर तैयारी
वही छांव देने की
नई कोमल पत्तियां लाकर
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