मध्यप्रदेश शासन में एक विभाग ऐसा भी है जो अपने आप को शासन से अलग मानता है। ये है उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग। शासन स्तर पर तो इसका नाम बदल कर उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण कर दिया गया है परन्तु संचालक स्तर पर आज भी उद्यानिकी एवं प्रक्षेत्र वानिकी ही चल रहा है। उद्यानिकी विभाग में भी एक सहायक संचालक उद्यान (प्रमुख उद्यान) भोपाल ऐसा है जो राजधानी का प्रमुख अंग होने के बाद भी इसके प्रमुख के पद पर एक कनिष्ठ अधिकारी को प्रभारी बनाकर बैठा रखा है। ये पद ऐसा है कि जिसे सारे मंत्री, सारे आई ए एस और वरिष्ठ अधिकारियों की सुनना पडती है। संचालक स्तर से जो आदेश एवं निर्देश जारी होते हैं उनको जिलों में तो मान्य कर लिया जाता है परन्तु संचालक की नाक के नीचे सहायक संचालक उद्यान प्रमुख उद्यान भोपाल संचालक के भी आदेश को पालन करने के पहले संचालक से कनिष्ठ अधिकारियों से पूछ पूछ कर काम करते हैं।
मध्यप्रदेश शासन जबकि दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों एवं गैंगमेनों को स्थाई कर्मी में विनियमितीकरण करने के स्पष्ट आदेश जारी कर चुका है एवं संचालक उद्यानिकी एवं प्रक्षेत्र वानिकी ने भी उक्त आदेश को संलग्न कर अपना कवरिंग लेटर लगाकर समस्त जिलाें के उप/सहायक संचालक एवं प्रमुख उद्यानों के सहायक संचालक को स्पष्ट निर्देश दिये हैं कि शासन के आदेश पर नियमानुसार कार्यवाही करें फिर भी सहायक संचालक उद्यान प्रमुख उद्यान के प्रभारी कोई कार्यवाही करने से पहले संचालक से कनिष्ठ अधिकारियेां से पूछ रहे हैं कि कैसे क्या करना है।
30 वर्ष विभाग की सेवा कर के जो दैनिक वेतन भोगी रिटायर्ड हो गये हैं उन्हें उपादान की राशि का भुगतान करने के शासन के स्पष्ट निर्देश होने के बाद भी सहायक संचालक उद्यान प्रमुख उद्यान द्वारा उपादान राशि का भुगतान करने में कोर्ट के आदेश को भी मानने को तैयार नहीं हैं। कोर्ट ने 7 रिटायर्ड दैनिक वेतन भाेगी कर्मचारियों को उपादान राशि लगभग 15.00 लाख का भुगतान करने के निर्देश दिये हैं। 120 दिन व्यतीत हो जाने के बाद भी न तो विभाग द्वारा अपील की गई न ही भुगतान किया गया।
अब एक नया बहाना बनाया जा रहा है कि भोपाल में प्रमुख उद्यान में तो दैनिक वेतन भोगी को रोज रखा एवं रोज निकाला जाता है अत: ये उपादान के हकदान नहीं हैं। मैं ये पूछना चाहता हूं कि जब रोज रखा जाता एवं रोज निकाला जाता है तो इन दैनिक वेतन भोगी को लगभग 30 वर्ष सेवा काल में एक भी बार क्यों नहीं निकाला गया। अब जब वे उपादान राशि की मांग कर रहे हैं तो ये बहाना क्यों बनाया जा रहा है कि रोज रखते और रोज निकालते हैं। लगभग 400 दैनिक वेतनभोगी पिछले 40 साल से लगातार क्यों काम कर रहे हैं. जब इतने आदमी की लगातार आवश्यकता रहती है तो शासन के इसकी मंजूरी क्यों नहीं ली गई। क्या इनके बिना मुख्यमंत्री निवास उद्यान, राजभवन उद्यान, एवं भोपाल की 6 नर्सरी एवं आई ए एस के घरों पर स्थित उद्यानों का रखरखाव संभव है।
विभाग में संचालक पद पर पिछले कई वर्ष से कोई आई ए एस या आई एफ एस की पदस्थापना शाासन करता आया है जो कुछ समय के लिये आता है जब तक वो विभाग के बारे में समझता है तब तक उसे हटाकर किसी दूसरे काे बैठा दिया जाता है। विभागीय वरिष्ठ अधिकारी को संचालक के पद पर पदस्थ नहीं किया जाता है जिससे वे हतोत्साहित होकर विभाग के विरूद्ध निर्णय लेकर विभाग को डुबाने में लगे हैं। एवं संचालक की चापलूसी कर संचालक को भी सही स्थिति से अवगत नहीं कराकर उसे भी भृमित करते रहते हैं।
शासन स्तर से जो निर्देश जारी हो चुकेे हैं उन्हें समझने की कोशिस न करते हुऐ शासन को हीे बार बार पत्र लिखकर मत मांगा जाता है। शासन ने भी कई बार पत्र जारी कर विभागीय स्तर से कार्यवाही करने के निर्देश दिये हैं परन्तु विभाग के अधिकारी अपनी हरकतों से बाज नहीं आते हैं बार बार शासन को परेशान करते हैं और कर्मचारी को उलझाते रहते हैं।
मध्यप्रदेश शासन जबकि दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों एवं गैंगमेनों को स्थाई कर्मी में विनियमितीकरण करने के स्पष्ट आदेश जारी कर चुका है एवं संचालक उद्यानिकी एवं प्रक्षेत्र वानिकी ने भी उक्त आदेश को संलग्न कर अपना कवरिंग लेटर लगाकर समस्त जिलाें के उप/सहायक संचालक एवं प्रमुख उद्यानों के सहायक संचालक को स्पष्ट निर्देश दिये हैं कि शासन के आदेश पर नियमानुसार कार्यवाही करें फिर भी सहायक संचालक उद्यान प्रमुख उद्यान के प्रभारी कोई कार्यवाही करने से पहले संचालक से कनिष्ठ अधिकारियेां से पूछ रहे हैं कि कैसे क्या करना है।
30 वर्ष विभाग की सेवा कर के जो दैनिक वेतन भोगी रिटायर्ड हो गये हैं उन्हें उपादान की राशि का भुगतान करने के शासन के स्पष्ट निर्देश होने के बाद भी सहायक संचालक उद्यान प्रमुख उद्यान द्वारा उपादान राशि का भुगतान करने में कोर्ट के आदेश को भी मानने को तैयार नहीं हैं। कोर्ट ने 7 रिटायर्ड दैनिक वेतन भाेगी कर्मचारियों को उपादान राशि लगभग 15.00 लाख का भुगतान करने के निर्देश दिये हैं। 120 दिन व्यतीत हो जाने के बाद भी न तो विभाग द्वारा अपील की गई न ही भुगतान किया गया।
अब एक नया बहाना बनाया जा रहा है कि भोपाल में प्रमुख उद्यान में तो दैनिक वेतन भोगी को रोज रखा एवं रोज निकाला जाता है अत: ये उपादान के हकदान नहीं हैं। मैं ये पूछना चाहता हूं कि जब रोज रखा जाता एवं रोज निकाला जाता है तो इन दैनिक वेतन भोगी को लगभग 30 वर्ष सेवा काल में एक भी बार क्यों नहीं निकाला गया। अब जब वे उपादान राशि की मांग कर रहे हैं तो ये बहाना क्यों बनाया जा रहा है कि रोज रखते और रोज निकालते हैं। लगभग 400 दैनिक वेतनभोगी पिछले 40 साल से लगातार क्यों काम कर रहे हैं. जब इतने आदमी की लगातार आवश्यकता रहती है तो शासन के इसकी मंजूरी क्यों नहीं ली गई। क्या इनके बिना मुख्यमंत्री निवास उद्यान, राजभवन उद्यान, एवं भोपाल की 6 नर्सरी एवं आई ए एस के घरों पर स्थित उद्यानों का रखरखाव संभव है।
विभाग में संचालक पद पर पिछले कई वर्ष से कोई आई ए एस या आई एफ एस की पदस्थापना शाासन करता आया है जो कुछ समय के लिये आता है जब तक वो विभाग के बारे में समझता है तब तक उसे हटाकर किसी दूसरे काे बैठा दिया जाता है। विभागीय वरिष्ठ अधिकारी को संचालक के पद पर पदस्थ नहीं किया जाता है जिससे वे हतोत्साहित होकर विभाग के विरूद्ध निर्णय लेकर विभाग को डुबाने में लगे हैं। एवं संचालक की चापलूसी कर संचालक को भी सही स्थिति से अवगत नहीं कराकर उसे भी भृमित करते रहते हैं।
शासन स्तर से जो निर्देश जारी हो चुकेे हैं उन्हें समझने की कोशिस न करते हुऐ शासन को हीे बार बार पत्र लिखकर मत मांगा जाता है। शासन ने भी कई बार पत्र जारी कर विभागीय स्तर से कार्यवाही करने के निर्देश दिये हैं परन्तु विभाग के अधिकारी अपनी हरकतों से बाज नहीं आते हैं बार बार शासन को परेशान करते हैं और कर्मचारी को उलझाते रहते हैं।
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