दिनांक 7 अक्टूवर
2016 को मध्यप्रदेश शासन सामान्य प्रशासन के
आदेश क्रमांक एफ 5-1/2013/1/3, भोपाल दिनांक 07 अक्टूवर
2016 के द्वारा स्पष्ट होने के बावजूद कि मध्यप्रदेश के समस्त दैनिक
वेतन भोगी श्रमिकों को स्थाईकर्मी में विनियमित करना है एवं आदेश में उल्लेखित
है कि ऐसे दैनिक वेतन भोगी जो 16 मई 2007 को कार्यरत थे
एवं 01 सितम्बर 2016 को भी कार्यरत थे उनमें से कुशल श्रमिक को 5000-100-8000, अर्धकुशल श्रमिकों को 4500-90-7500 एवं अकुशल श्रमिकों को 4000-80-7000 के
वेतनमान में उनके कार्यरत वर्ष के अनुसार वेतन वृद्धि का लाभ देते हुए तथा 125
प्रतिशत डी.ए. देते हुए 1 सितम्बर 2016 से वेतन प्रदान किया जाना है।
विभाग
के संचालक द्वारा इस आदेश के तारतम्य में संचालक के द्वारा एक पत्र समस्त जिलों
को जारी कर सामान्य प्रशासन के निर्देशों का पूर्ण रूप से पालन करने के निर्देश
जारी किये थे।
1. विभाग के कतिपय
अधिकारियों को यह नागवार गुजरा और इस आदेश के क्रियान्वयन पर कैसे रोक लगाई जाये
इस उधेडबुन में जुट गये।
2. सर्व प्रथम तो शासन
से दिशा निर्देश लेने के लिये पत्र लिख कर क्रियान्वयन को टालने की कोशिश की गई।
जब सचिव स्तर से शासन के निर्देशों का पालन करने की बात की गई तो अगता पैतरा खेला
गया।
3. समस्त जिलों को
दूसरा पत्र जारी कर यह निर्देशित किया गया कि दैनिक वेतन भोगी की वरिष्ठता सूची
बनाकर संबंधित जिले/संभाग के कलेक्टर/कमिश्नर को भेज दी जायें और पल्ला झाड
लिया जाये। भोपाल जिले के दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी संगठित हुए एवं विरोध प्रारंभ
किया तो ये पैतरा भी फेल हो गया।
4. अब अधिकारियों को
समझ में आया कि अब तो स्थाईकर्मी के आदेश करना ही पडेंगे तो नया पैतरा खेला कि विभागीय
परामर्सदात्री समिति की बैठक बुलाकर उसमें दैनिक वेतन भोगी को अकुशल, अर्धकुशल एवं कुशल में वर्गीकरण के नियम बनाये गये। जबकि नियमानुसार नियम बनाने का
अधिकार विभागीय अधिकारियों को है ही नहीं या नियम बनाकर उन्हें शासन से अनुमोदित
कराना था जो नहीं कराया गया। उमा भारती के शासनकाल के शासनकाल में निकाले गये
दैनिक वेतन भोगी को पुन: सेवा में लेने के आदेश के बाद जिन निकाले गये दैनिक वेतन
भोगी को 2004 में पून: सेवा में लिया गया था उन्हें श्रमायुक्त की कृषि श्रमिक
की साप्ताहिक दर पर रखा गया था जबकि पूर्व में जिलाध्यक्ष की मासिक कुशल श्रमिक
की दर पर कार्यरत थे। वर्ष 2013 में संचालक के आदेश से समस्त साप्ताहिक श्रमिकों
को कुशल श्रमिक की मासिक दर पर भुगतान किया जाने लगा। तीस-पैंतीस
वर्ष की सेवा कर चुके एवं पहले से ही कुशल श्रमिक को इस नये नियम से पुन: अकुशल
श्रमिक की श्रेणी में लाकर खडा कर दिया गया। ये पैतरा सफल हो गया। इससे 2007 के
बाद से कार्यरत श्रमिक जो कुशल थे अकुशल हो गये और उन्हें मासिक वेतन में लाभ की
बजाये हानि हो रही है। उन्हें दो सीढी नीचे धकेल दिया गया है। इससे भोपाल जिले
में ही लगभग 200 श्रमिक प्रभावित हुए हैं। चूंकि अभी श्रमिक ये देख रहे हैं कि
विभाग उन्हें स्थाईकर्मी में वर्गीकृत करता है कि नहीं इसलिये शांत हैं।
वर्गीकरण हो जाने के बाद कर्मचारियों में रोष उत्पन्न होगा जब उन्हें पहले से
कम वेतन प्राप्त होने लगेगा।
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