क्या सीता के स्वयंवर के समय जाति बंधन था. यदि कोई भील जाति का आदमी धनूष तोड़ देता तो क्या राजा जनक विवाह करने से मना कर सकते थे. जाति बंधन स्वयंवर पर लागू नहीं होता. आज हम अरेन्ज मैरिज के रूप में झूठी शानोसौकत दिखा कर समाज में बुराई पैदा कर रहे हैं.
दहेज प्रथा, जातिवाद, समाजवाद, आदी भारत में बड़ी समस्या रही हैं. हालांकि अरेंज मैरिज कोई खराब व्यवस्था नहीं है परन्तू अपनी झूठी शान की खातिर लड़के या लड़की की पसंद की शादी में अडंगा डलना भावना को न समझना केवल हम ही सही हैं ऐसा समझना बहूत ही बूरी बात है.
अरेंज मेरिज का पता चलते ही लड़का या लड़की के माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी, बूआ-फूफा, मोसा-मोसी सभी रिस्तेदार तैयारी में जूट जाते हैं. सभी सहयोग करने को तैयार रहते हैं किसे क्या गिफ्ट देना है ओर उनके यहां शादी में क्या व्यवहार आया था उसके हिसाब से सभी मदद करते हैं. पर अरैंज मैरिज हमेशा सफल होती हैं ऐसा जरूरी तो नहीं है. और लव मैरिज भी हमेशा सफल हो ऐसा भी कोई दावा नहीं कर सकता है. हां लव मेरिज में ये बूराई जरूर है कि रिस्तेदारों और सगे संबंधियों को ये बहाना मिल जाता है कि उनकी मर्जी से तो शादी की नहीं वे मदद क्यों करें. यदि शादी का डिसीजन लड़का और लड़की ने ही लिया है तो आगे भी सारे डिसीजन उन्हें स्वयं ही लेना पडेंगे.
मैरी स्थिति कूछ ऐसी हो गई जैसी सांप और छछूंदर की होती है जब मूझे मेरी बिटिया जो पेशे से ब्यूटीशियन है, ने अपना डिसीजन सूनाया कि उसे शादी उसकी मर्जी से करना है और किससे करना है उसे उसने देख परख लिया है.
मैंने भी यह बात किसी से छिपाना ठीक नहीं समझा. सारे सगे संबंधियों को बता दी. विरोध तो होना ही था.
पिताजी ने कह दिया कि " देहरी नहीं चढ़ पाओगे"
ससूर साहब ने कह दिया " कूछ भी करना पड़े......ये शादी नहीं हो सकती.." किसी ने भी स्थिति जानने की कोशिस नहीं की.
आज मैं भी लड़की का साथ न दूं तो क्या होगा. वह भाग कर शादी कर ले. तब बदनामी नहीं होगी?
आगे उसके भाईयों की शादी में दिक्कत जरूर आयेगी परन्तू जब तक वे अपने पैरों पर खड़े नहीं होंगे उनकी शादी भी करना आज की स्थिति में ठीक नहीं है. आज मूझे सहारा श्री की वो बात याद आती है..."कोई किसी के लिये कूछ नहीं करता, जो भी करता है, अपने लिये करता है "
समाज मैं महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने का क्या मतलब है यदि हम उनकी भावनाऔं को रौंधते हूए बिना उनकी मर्जी के सारे निर्णय उनपर थोपते रहेंगे.
दहेज प्रथा, जातिवाद, समाजवाद, आदी भारत में बड़ी समस्या रही हैं. हालांकि अरेंज मैरिज कोई खराब व्यवस्था नहीं है परन्तू अपनी झूठी शान की खातिर लड़के या लड़की की पसंद की शादी में अडंगा डलना भावना को न समझना केवल हम ही सही हैं ऐसा समझना बहूत ही बूरी बात है.
अरेंज मेरिज का पता चलते ही लड़का या लड़की के माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी, बूआ-फूफा, मोसा-मोसी सभी रिस्तेदार तैयारी में जूट जाते हैं. सभी सहयोग करने को तैयार रहते हैं किसे क्या गिफ्ट देना है ओर उनके यहां शादी में क्या व्यवहार आया था उसके हिसाब से सभी मदद करते हैं. पर अरैंज मैरिज हमेशा सफल होती हैं ऐसा जरूरी तो नहीं है. और लव मैरिज भी हमेशा सफल हो ऐसा भी कोई दावा नहीं कर सकता है. हां लव मेरिज में ये बूराई जरूर है कि रिस्तेदारों और सगे संबंधियों को ये बहाना मिल जाता है कि उनकी मर्जी से तो शादी की नहीं वे मदद क्यों करें. यदि शादी का डिसीजन लड़का और लड़की ने ही लिया है तो आगे भी सारे डिसीजन उन्हें स्वयं ही लेना पडेंगे.
मैरी स्थिति कूछ ऐसी हो गई जैसी सांप और छछूंदर की होती है जब मूझे मेरी बिटिया जो पेशे से ब्यूटीशियन है, ने अपना डिसीजन सूनाया कि उसे शादी उसकी मर्जी से करना है और किससे करना है उसे उसने देख परख लिया है.
मैंने भी यह बात किसी से छिपाना ठीक नहीं समझा. सारे सगे संबंधियों को बता दी. विरोध तो होना ही था.
पिताजी ने कह दिया कि " देहरी नहीं चढ़ पाओगे"
ससूर साहब ने कह दिया " कूछ भी करना पड़े......ये शादी नहीं हो सकती.." किसी ने भी स्थिति जानने की कोशिस नहीं की.
आज मैं भी लड़की का साथ न दूं तो क्या होगा. वह भाग कर शादी कर ले. तब बदनामी नहीं होगी?
आगे उसके भाईयों की शादी में दिक्कत जरूर आयेगी परन्तू जब तक वे अपने पैरों पर खड़े नहीं होंगे उनकी शादी भी करना आज की स्थिति में ठीक नहीं है. आज मूझे सहारा श्री की वो बात याद आती है..."कोई किसी के लिये कूछ नहीं करता, जो भी करता है, अपने लिये करता है "
समाज मैं महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने का क्या मतलब है यदि हम उनकी भावनाऔं को रौंधते हूए बिना उनकी मर्जी के सारे निर्णय उनपर थोपते रहेंगे.
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