About Me

भोपाल, मध्‍यप्रदेश, India
लेखक कला के क्षेत्र में सबसे पहले फिल्‍म टंट्या भील में कार्य किया जिसमें होल्‍कर पुलिस का रोल निभाया, इसके बाद फिल्‍म चक्रब्‍यूह में कार्य किया जिसमें ब्‍यूरोकेट का रोल निभाया एवं फिल्‍म सत्‍याग्रह में अनसनकारी का रोल किया जिसमें अमिताभ बच्‍चन के साथ अनसन पर बैठकर रोल किया।

Tuesday, 30 July 2024

मेरे सपनों का भोपाल

जहां हरित वन हरियाली, और तलैया ताल है।
मध्यप्रदेश का हृदय स्थल, मेरे सपनों का भोपाल है।।

भारत भवन, मछलीघर, लेक व्यू, और वन विहार है।
यहां रोज ही ईद, दीवाली और  होली का त्योहार है।।

बावडियों और मकवरों में पत्थर पर नक्कासी है।
गुफा मंदिर, विड़ला मंदिर, यहीं पर मथुरा काशी हैं।।

भवनों और संग्रहालयों की, लगी हुई कतार यहां।
रविन्द्र, भारत, मानस, गांधी, विड़ला, मानव तैयार यहां।।

महापुरूषों की प्रतिमाओं से सजे हुए चौराहे हैं।
राजा भोज संरक्षण हेतु ताल मझारे आये हैं।

रंग मंच और कला संस्कृति यहां पर गौरव पाती है।
स्कूलों और कालेजों से निकल  मानव पीढ़ी जाती है।।

विधान सभा, राजभवन, मुख्यमंत्री आवास यहां।
मध्यप्रदेश की वागडोर का होता है प्रयास यहां।।

बल्लभ भवन और मंत्रालय में आय-व्यय के खाते हैं।
सतपुड़ा और विंध्याचल काे शरणागत् ही पाते हैं।

हिन्दू-मुस्लिम, सिख, ईसाई एक तराना गाते हैं।
यहां सभी हम जाति-पाती तज भोपाली बन जाते हैं।।

बाग बगीचे पिकनिक स्थल, बच्चों की किलकारी है।
ये भोपाल का ताल हमारा, सब तालों पर भारी है।।

केरवा डेम, हलाली डेम में कहां से आता पानी है।
भोजपुर मंदिर, भीम बैठका, पास ही रातापानी है।

ताजुल मस्जिद, ताज महल ये हमारे प्राचीन काल है।
नई सदी को कदम बढ़ाता यहां पर डी.बी.माल है।

दोनों स्टेशन एवं बस स्टेण्ड पर रहती रेलम पेल है।
अन्तर राष्टीय हवाई अडडे पर आती जाती प्लेन है।।

आशीषों का आंचल भरकर मां नर्मदा आई है।
खुशहाली का गीत सुनाती, तरूणों की तरूणाई है।।

उड़न खटोला यहां कराता आदिनाथ का ज्ञान है।
ईश्वर  का एहसास कराता, पर्वत  मनुआभान है।।

विदेशी पर्यटक सैलानियों का यहाँ पर आना-जाना है।
भारत हैवी इलेक्ट्रिकल का यहाँ पर कारखाना है।।

डाउ केमिकल इस चमन में मौत बनकर आयी हैं।
हम उन्हें श्रद्धांजलि देते जिनने जान गवाई है।।

सड़के चौड़ी पार्किंग स्थल, वाहनों का न शोर हो।
कलेक्टेट और निगम, पालिका, इनपर भी तो गौर हो।।

जगह जगह पर ओवरब्रिज हो, कभी न ट्रैफिक जाम हो।
पुराने शहर में नये शहर सा जाने में आराम हो।।

जल्द  मैट्रो चले यहां पर ऐसा मेरा ख्याल है।
सबसे अच्छा, सबसे प्यारा, मेरे सपनों का भोपाल है।।

आयो बनाये जन्नत इसको, स्वच्छता का ख्याल रखें।
नई पीढ़ी आगे आये उसे सम्मुख यह सवाल रखें।।

… दिनेश दुबे
9229547354

कहीं तो रहेंगे

नजर में रहें न रहें, नगर में रहेंगे.
नगर में रहें न रहें, सफर में रहेंगे.
सफर में रहें न रहें, खबर में रहेंगे.
वतन में रहें न रहें, चमन में रहेंगे.
चमन में रहें न रहें, गगन में रहेंगे.
गगन में रहें न रहें, मन में रहेंगे.
मन में रहें न रहें, जेहन में रहेंगे
तुम मुझे यूं भुला न पाओगे

Tuesday, 11 January 2022

बोतल में गुलाब

शाख से तोड़कर बोतल में लगाने वालों
गर्गनें काटकर पानी तो पिलाने वालों
खूसबूयें और शवाब मैं तूम्हारी महफिल में,
बिखेरता रहूं महफिल को सजाने वालों.

एक माली ने मेरा पूरा खयाल किया,
खाद मिट्टी कीटनाशक का इस्तेमाल किया,
जब में हस्टपूस्ट हूआ और इठलाया,
अपनी महफिल के लिये तूने मूझे हलाल किया.

Wednesday, 15 December 2021

उपादान की गणना कैसे करें

जब आप किसी एक कंपनी या संस्थान में लंबे समय तक काम करते हैं, तो कंपनी आपको आभार स्वरूप या इनाम के रूप में ग्रेच्युटी प्रदान करती है। इस पोस्ट में हम जानेंगे कि ग्रेच्युटी किसे मिलती है? इसके लिए नियम और शर्तें क्या हैं। अंत में हमने ग्रेच्युटी का फार्मूला और गणना करने का तरीका भी उदाहरण के साथ बताया है।

ग्रेच्युटी के नियम
इसके मुख्य नियम व विशेषताएं निम्नलिखित हैं।

एक संस्थान में 5 साल नौकरी पूरी होने पर ​ही मिलेगी
इसमें कर्मचारियों को एक निश्चित समय सीमा के बाद नौकरी छोड़ने पर (रिटायरमेंट या इस्तीफा) दोनों ही स्थितियों में. एक निश्चित रकम आभार स्वरूप इनाम या पारितोषिक के रूप में प्रदान की जाती है। इसलिए सरकार ने एक कंपनी या संस्थान में कम से कम 5 साल की नौकरी पूरी कर लेने वालों के लिए ही ग्रेच्युटी देने का नियम बनाया है।

हालांकि, 4 साल 8 महीने की नौकरी पूरी करने पर भी आपके 5 साल पूरे मान लिए जाते हैं। कुछ विशेष परिस्थितियों में 5 साल पूरे करने के पहले भी आप ग्रेच्युटी के हकदार होत हैं। इन चीजों को हमने नीचे अलग से समझाया है।

10 से अधिक कर्मचारी होने पर लागू करना अनिवार्य
ग्रेच्युटी अधिनियम उन सभी कंपनियों, संस्थानों या प्रतिष्ठानों पर लागू होता है, जहां पर कम से कम 10 या इससे अधिक कर्मचारी काम करते हैं। एक बार किसी संस्थान में ग्रेच्युटी अधिनियम लागू होने के बाद भविष्य में कभी कर्मचारियों की संख्या 10 से कम होने पर भी ग्रेच्युटी के नियम उस पर लागू रहेंगे।

दो स्थितियों में 5 साल नौकरी के पहले भी मिल सकती है
ग्रेच्युटी पाने के लिए न्यूनतम 5 साल नौकरी पूरी होने की शर्त सिर्फ दो स्थितियों में छूट मिलती है। नौकरी के दौरान अगर कर्मचारी के साथ ऐसी कोई घटना होती है तो उसे 5 साल से कम कार्यकाल पर भी ग्रेच्युटी मिलती है।

कर्मचारी की आकस्मिक मृत्यु होने पर
दुर्घटना या बीमारी के कारण कर्मचारी के अपंग होने पर
नौकरी के दौरान कर्मचारी की मौत होने की स्थिति में ग्रेच्युटी की रकम उसके नोमिनी या उत्तराधिकारी को मिलेगी।
4 साल और 8 महीने पूरे होने पर भी बनता है ग्रेच्युटी का दावा
ग्रेच्युटी की गणना में नौकरी की अवधि के निर्धारण में निम्नलिखित नियम लागू होंगे।

जमीन के ऊपर चल रहे उद्योग में 4 साल 8 महीने की नौकरी पूरी करने के बाद कर्मचारी ग्रेच्युटी पाने का अधिकारी बन जाता है। जमीन के नीचे चलने वाले उद्योगों ( जैसे खनन उद्योग) में, 4 साल व 190 दिन (6 महीने) काम करने पर 5 साल का कार्यकाल माना जाएगा और ऐसा कर्मचारी भी ग्रेच्युटी पाने का अधिकारी होगा।

दरअसल जमीन के उूपर संचालित होने वाले उद्योग में कम से कम 240 दिन काम करने पर 1 साल की अवधि मानी जाती है, जबकि जमीन के नीचे जलने वाले उद्योगों में कम से कम 190 दिन काम करने पर 1 पूरा साल माना जाता है।

20 लाख से अधिक नहीं हो सकती कुल ग्रेच्युटी
कोई कंपनी या संस्थान अपने किसी कर्मचारी को कुल 20 लाख रुपए से अधिक ग्रेच्युटी लाभ प्रदान नहीं कर सकती। भले ही उसने कितने ही वर्षों तक वहां नौकरी की हो। कोई एक कर्मचारी भी अपने सभी कार्यकालों को मिलाकर कुल 20 लाख रुपए से अधिक ग्रेच्युटी प्राप्त नहीं कर सकता, भले ही चाहे उसने जितनी भी कंपनियों मेें नौकरी की हो।

ग्रेच्युटी की रकम पर टैक्स छूट के नियम
ग्रेच्युटी के रूप में मिली 20 लाख रुपए तक की रकम पर सरकार टैक्स छूट प्रदान करती है। लेकिन, अगर कोई कंपनी ग्रेच्युटी की मान्य सीमा 20 लाख रुपए से अधिक ग्रेच्युटी किसी कर्मचारी को प्रदान करती है, तो अतिरिक्त रकम पर उसे अपने टैक्स स्लैब के अनुसार टैक्स देना होगा।

नोमिनी के नाबालिग होने पर ग्रेच्युटी का क्या होगा?
ग्रेच्युटी भुगतान के समय अगर कर्मचारी का नोमिनी अगर नाबालिग है तो श्रमायुक्त उस रकम को उस नोमिनी के नाम पर SBI या अन्य किसी सरकारी बैंक में एफडी कर देंगे। बा​लिग होने की​ स्थिति में वह उस रकम को प्राप्त कर सकता है। नोमिनी का नाम दर्ज न होने पर, उसके वैध उत्तराधिकारी का ग्रेच्युटी की रकम पर हक बनता है। लेकिन इसके लिए उसे पर्याप्त प्रमाण प्रस्तुत करने होंगे।

ग्रेच्युटी की गणना कैसे करें? उदाहरण सहित
आप अपनी अंतिम सेलरी में निम्नलिखित फॉर्मूला लगाकर सीधे ग्रेच्युटी की रकम निकाल सकते हैं—


अंतिम सेलरी × 15/26 × नौकरी के कुल वर्ष
(यहां लास्ट सेलरी से मतलब, पिछले 10 महीनों की औसत सेलरी से है।)

उदाहरण: मान लेते हैं आपकी अंतिम सेलरी 30 हजार रुपए है। इस हिसाब से आपके प्रतिदिन 1 हजार रुपए (30000÷30) बैठते हैं।  लेकिन,  महीने भर में कुल 26 कार्यदिवस होते हैं, इसलिए ग्रेच्युटी की गणना में 30 दिन की बजाय 26 दिन से भाग होता है।

ऐसे मेें आपकी 1 दिन की सेलरी बनेगी 30000÷26= 1153 रुपए
इस तरह से 15 दिन की सेलरी बनेगी 1153 × 15=17307 रुपए
यानी कि 1 साल की नौकरी के लिए आपको कुल 17307 रुपए मिलेंगे
अगर आपने 5 साल नौकरी की है तो ​आपको कुल 17303 × 5=86515 रुपए मिलेंगे।
30 दिन के अंदर हो जाना चाहिए ग्रेच्युटी का भुगतान
ग्रेच्युटी एक्ट के अनुसार कंपनी की ओर से 30 दिन के अंदर ग्रेच्युटी की रकम कर्मचारी को जारी कर दी जानी चाहिए। बिना किसी पर्याप्त और वैध कारण के इससे अधिक विलंब नहीं किया जा सकता।

प्राय: कंपनियां या संस्थान कर्मचारी के नौकरी छोड़ने के बाद उसके हिसाब-किताब (full and final settlements) के साथ ही ग्रेच्युटी की रकम भी दे दते हैं। अगर कर्मचारी का ग्रेच्युटी पाने का दावा स्वीकार नहीं किया जा रहा है तो इसकी भी सूचना 30 दिन के अंदर उसे मिल जानी चाहिए। 30 दिन के बाद संस्थान ग्रेच्युटी से इंकार की सूचना नही दे सकता।


स्थाईकर्मी का उपादान गणना का उदहारण:-

8000+(8000*171%=)13680=21680 अंतिम वेतन

21680/26=834 एक दिन का वेतन

834*15=12510, 15 दिन का वेतन

अर्थात 12510* 35 = 437840      
35 वर्ष काम करने पर ये ग्रेज्युटी बनेगी 437840

Monday, 26 April 2021

गुवार कब फूटेगा

भावनाएँ अव्यक्त कब तक रह सकेंगी ए प्रिये,
ये सफेदी शामियाने बन न जाऐं दुःकफन,
इन घुमड़ते वादलों को कर न देना तुम दफन,
चिर आग जो धधकती रह रही तुम्हारे मन में है
ज्वार बनकर फूटने दो या बरसने दो ए प्रिये.

 

Wednesday, 23 December 2020

स्थाईकर्मी का वेतन पुनर्निर्धारण

सहायक संचालक उद्यान, प्रमुख उद्यान भोपाल ही नहीं पूरे प्रदेश के विभागीय स्थाईकर्मी आज उस विभागीय आदेश के कारण रिकवरी और वेतन पुनर्निर्धारण का दंश झेलने को विवश हो रहे हैं जो सामान्य प्रशासन के आदेश को अतिक्रमण कर जारी किया गया था. क्योंकि नियम बनाने का अधिकार सिर्फ शासन को है, फिर ऐसे नियम विभागीय अधिकारी ने यदि बनाना था तो उसका प्रस्ताव बनाकर शासन को भेजना चाहिए था. पर नहीं भेजा गया. समिती बनाकर जिसने विभाग के अधिकारियों से अनुमोदन लेकर पत्र जारी कर दिया गया. ये पहली बार नहीं हुआ है जिसमें विभागीय अधिकारी ने शासन के नियम निर्देश की धज्जियां उड़ाई हों पूर्व में भी शीर्ष पर बैठे अधिकारी नियम विरुद्ध कई लोगों को नियुक्ति तक दे चुके हैं. यदि ये प्रकरण खुल गया तो कई लोगों की नौकरी खतरे में आ जायेगी.
आज संचालनालय में वर्षों से जमे कर्मचारी जो पूर्व अधिकारियों की चम्मचगीरी कर श्रमिक से अधिकारी बन गये वही श्रमिकों के विरोधी हो गये हैं अधिकारियों की गल्ती पर उन्हैं नियम कोट कर कर्मचारी भी उसे सुधार सकता है, परन्तु इन्हें तो जी सर के अलावा कुछ आता ही नहीं है.
प्रदेश के स्थाई कर्मियों और दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों से आह्वान करता हूं कि अपना संगठन तैयार करें नहीं तो स्थाईकर्मी से दोबारा साप्ताहिक श्रमिक की ओर जा रहे हो. 

Sunday, 5 May 2019

क्या उद्यान विभाग के श्रमिकों पर गिरेगी गाज : फिर से आ गया कांग्रेस का राज।

वर्ष 1999 में मध्‍यप्रदेश की राजधारी भोपाल में कार्यालय सहायक संचालक उद्यान (प्रमुख उद्यान) भोपाल के अंतर्गत योजना केश प्रोग्राम के अंतर्गत शहर के नागरिकों को अपने निवास पर स्थित उद्यान, किचेन गार्डन में माली की सेवा लेने हेतु सशुल्‍क प्रदान की जा रही है इसी के अंतर्गत गणमान्‍य  नागरिकों को भी यह सेवा प्रदान की गई जिसके अंतर्गत माननीय मुख्‍यमंत्री, कैबिनेट मंत्री, राज्‍य मंत्री एवं आई;ए;एस; के यहां 2-3 माली उपलब्‍ध कराये गये। परन्‍तु उक्‍त सेवा सशुल्‍क न  होकर नि:शुल्‍क आज तक जारी है। साथ ही उक्‍त कार्यालय द्वारा शासकीय एवं अशासकीय उपक्रमों के गार्डन के डिव्‍हलप्‍मेंट एवं मैंटिनेन्‍स का कार्य भी किया जा रहा है जिसका  भुगतान संबंधित उपक्रम से प्राप्‍त हो रहा है। भोपाल जिले में स्थित नर्सरियोें में से वहुत सी नर्सरियों जहां पर सैलिंग सेन्‍टर  था उन्‍हें बंद कर दिया गया है जैसे बडा बाग नर्सरी, फरहतआफजा नर्सरी, पुरानी विधानसभा नर्सरी, 2 नंबर पार्क, 3 नंबर पार्क । इन पार्कों के बंद हाने से बहुत से कर्मचारी जाे उनमें कार्यरत थे वे सब वर्तमान में संचालित नर्सरियों 1 नंबर पार्क, गुलाब उद्यान, 5 नंबर पार्क एवं 4 नंबर पार्क में सिफ्ट हो गये है। शासन के आदेशानुसार उनमें से 200 के लगभग दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों को स्‍थाईकर्मी में विनियमित किया गया है। 200 के लगभग श्रमिक, कमिश्‍नर  की दर पर अभी भी कार्यरत हैं।
पूर्व में श्रमिकों को अर्द्धवार्षिकी आयु पूर्ण होने पर सेवा से प्रथक कर दिया जाता था और उन्‍हें न हो उपादान की राशि दी जाती थी न ही कोई आर्थिक सहायता जैसे फंड तो काटा  ही नहीं जाता था जबकि किसी भी संस्‍थान में 10 से अधिक कर्मचारी कार्यरत होने पर वहां पर फंड काटने का नियम है। रिटायर होने के पश्‍चात् कई कर्मचारी भीक मांगने पर विवस थे। कई कर्मचारी ने लेवर कोर्ट में केस दर्ज किये एवं जीतकर उपादान राशि प्राप्‍त की। आज भी 190 श्रमिकों का फंड नहीं काटा जा रहा है। विभाग इन कर्मचारियों से वेगारी करवाता है जैसे आईएएसों केे यहां कपडे, बरतन धोना, खाना बनाना, के अलावा इन्‍हीं श्रमिकों को कार्यालय में कम्‍प्‍यूटर पर कार्य हेतु रखा गया है। इनमें से कुछ तो ट्रेजरी के साफ्टवेयर पर पेविल एवं आन लाईन बिल लगाने का कार्य भी कर रहे हैं। नियमित कर्मचारी जो कई बार शासकीय खर्चे पर कम्‍प्‍युटर ट्रेनिंग कर चुके हैं वे तो कम्‍प्‍यूटर को हाथ भी नहीं लगाते हैं। कम्‍न्‍प्‍यूटर का सारा काम इन्‍हीं श्रमिकों से लिया जाता है। ये बक्‍त पडने पर पानी पिलाने का काम भी कर देते हैं और इनके द्वारा अपने बारे में कोई मांग की जाती है तो इन्‍हें फिर से फील्‍ड में निदाई गुडाई का काम कराने हेतु ऑफिस से हटाने की धमकी दी जाती है। वेचारे डर के मारे चुपचाप अधिकारी की गाली गलोच को सुनकर अपना काम करते रहते हैं।
गौर तलब है कि अधिकारी की कृपा जिसपर हो जाये तो उसे घर बैठे भी वेतन मिल सकता है बस उसका एटीएम कार्ड अधिकारी के पास जमा करना होता है। जिसपर अधिकारी मेहरवान हो तो उसे यहीं से उठाकर ड्राईवर या बाबू बना दिया जाता है। शाासन के सारे नियम ताक पर रखकर जिन्‍हें चाहे तो स्‍थाईकर्मी में विनियमित कर दिया जाता है, जो दक्षिणा नहीं दे पाता वो श्रमिक में ही रह जाता है।
अब तो खर्चा कम करने के नाम पर इन सभी श्रमिकों पर गाज गिरने का अंदेशा है परन्‍तु अधिकारी कम शातिर दिमाग नहीं है पहले आईएएस और आईपीएस के यहां से वेगारी करने बाली लेवर को हटा लिया गया है ताकि ये अधिकारी विभागीय पीएस पर दवाब बना कर इन्‍हें सेवा से प्रथक न होनें दें। वहीं इनकर्मचारियों सेवा से हटाने से एक यह भी अंदेशा है कि जिन  कर्मचारियों  को 20से25 हजार रूपये  लेकर कार्य पर  रखा  था वे  पैसे बापस  मांगने आ  जायेंगे।

आगे आगे देखते हैं होता है क्‍या

Thursday, 1 February 2018

डर लगता कुछ कहने में

मियां आप तो रहने दें,
आपके वश का काम नहीं
मूंछ मुंडायें चूड़ी पहनें
जो डर लगता कुछ कहने में

बोल बिकाऊ लगते हैं
लेख़ कमाऊ लगते हैं
हम तो मर मर कर जी लेंगे
हम को सबकुछ सहने दें

अपने बच्चों को तुम पालो
हम भी बच्चे पाल रहे
बाहुवली से डर कर रहना
महावली को रहने दें

दिनेश दुबे 9229547354

Wednesday, 16 August 2017

तपती गर्मी में छांव सी मां....

तपती गर्मी में छाँव सी माँ !

तपती गर्मी में छाँव सी माँ
रिसते जख्मों पर दवाओं सी माँ

नन्हें पैरों की जुराबों सी माँ
ऊनी टोपी सी दुआओं सी माँ

परियों की कहानी-कथाओं सी माँ
आशीषों सी माँ और सुझावों सी माँ

समरसता की मूरत पर झुकाव सी माँ
मिटटी के खिलोने, कागज़ की नाव सी माँ

ममता के आँगन में हारी सी माँ
कभी नहीं थकती ये प्यारी सी माँ

बच्चे की चोटों पर सहमी सी माँ
पीर-फकीरों पर रहमी सी माँ

आँगन के झूले और पलने सी मां
फिर बूढे की मॉं हो या ललने की मॉ

प्रेम प्यार उपकार नहीं सहज कर्म और निष्छल है
वह केवल मॉ का दिल है जो गंगा जल सा निर्मल है
मॉ के लिये तो बेटा बेटी रहते हैं एक समान यहॉ
भले हो पृथ्वी गोल यहॉ पर मॉ का ऑचल समतल है





Wednesday, 9 August 2017

फिजूल है मोदी या शाह को कोसना

क्या नरेन्द्र मोदी और अमित शाह भाजपा में तानाशाह की भूमिका में हैं? जिन सिद्धांतों पर लड़ाई लड़ने के लिए भाजपा का जन्म हुआ था, क्या वो रास्ता यह पार्टी छोड़ चुकी है। और आज की भाजपा में कार्यकर्ता तो दूर मंत्रियों की भी आवाज नहीं निकलती। ये कुछ प्रतिक्रियाएं हैं जो सोमवार के फर्स्ट कालम, भाजपा का यह मौजूदा दौर कब तक...पर सामने आईं हैं। सत्ता की अपनी स्वाभाविक बुराईयां होती है। जाहिर है हर जगह तो भाजपा इससे अछूत हो नहीं सकती। 

दूसरा भाजपा अगर अपने आपको लचीला नहीं बनाती तो उसका यह मौजूदा दौर भी कोसों दूर होता है। और भाजपा ने यह राजनीति कोई नरेन्द्र मोदी या अमित शाह के राष्ट्रीय स्तर पर हुए प्रादुर्भाव के बाद तो सीख नहीं ली। लंबा समय लगा है, भाजपा को राजनीति सीखने के लिए। जाहिर है राजनीति के दांवपेंच भी आप उससे ही तो सीखेेंगे जो सत्ता में मौजूद है। तो इसमें शक नहीं कि कांग्रेस से विरोध के बावजूद भी भाजपा ने सीखा तो सबकुछ कांग्रेस से ही है। इसका दर्द भाजपा में दो तरह के लोगों को हो सकता है। एक जिनकी सत्ता में उपेक्षा हो रही है और दूसरे वे जो खांटी टाईप के जनसंघी मानसिकता के कार्यकर्ता हैं।

दलबदल, जनप्रतिनिधियों की खरीद फरोख्त, राज्यों की सरकारों को गिराना, बनाना, बर्खास्त करना क्या यह सिर्फ पिछले तीन सालों की कहानी है। सीबीआई सहित तमाम जांच एजेंसियों के दुरूपयोग के मामले क्या इस देश में नए हैं? वैसे भी एक स्थापित तथ्य है कि राज करने में नीति कहीं नहीं होती। गवर्नेंस की नीति तो हो सकती है। लेकिन राजनीति के साथ तो साम-दाम-दंड-भेद शास्वत रूप से जुडेÞ हैं। तो भाजपा जो कर रही है, उसके लिए मोदी या शाह को कोसना फिजूल है। 

सोमवार को ही पूर्वोत्तर के त्रिपुरा में तृणमूल कांग्रेस से निष्कासित छह विधायक भाजपा में शामिल हो गए और कम्युनिस्टों के इस राज्य में भाजपा ने विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल का दर्जा हासिल कर लिया। त्रिपुरा में भाजपा का कोई नामलेवा भी नहीं है। लेकिन अपने संगठन कौशल में निपुण भाजपा को आखिर पैर रखने का मौका तो मिला या नहीं। आज उत्तरपूर्व में देख लें, असम जैसे बड़े राज्य सहित मणिपुर में भी उसकी सत्ता है और इसलिए सेवन सिस्टर्स में उसका दखल हर कहीं थोड़ा बहुत तो हो ही गया है। 

रही बात नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के तानाशाह होने की तो मध्यप्रदेश पर ही गौर कर लीजिए। नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बने तीन साल पूरे हो गए लेकिन क्या वे शिवराज सिंह चौहान का बाल भी बांका कर पाएं। मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही इन चर्चाओं ने कई बार जोर पकड़ा कि शिवराज अब गए, तब गए। मोदी जितनी बार भी प्रधानमंत्री बनने के बाद मध्यप्रदेश आए, उनकी बाडी लेंग्वेज ने कभी भी यह नहीं दर्शाया कि वे शिवराज सिंह चौहान से खुश हैं।

 मोदी की प्रशासनिक क्षमताएं और पकड़, काम करने की उनकी अपनी शैली हो सकता है कि लोगों को उनमें एक दृढ़ शासक का आभास कराती हो। यह भी एक तथ्य है कि इस समय पीएमओ की जैसी कार्यशैली है, शायद वो पहले के प्रधानमंत्रियों के बिल्कुल विपरीत है। कांग्रेस के भ्रष्टाचार को सामने रखकर मोदी ने देश की जनता को अपने ईमानदार होने का भरोसा दिलाया था। इसलिए मोदी अगर अपने मंत्रियों और अफसरों पर सख्त हो तो इसमें बुराई भी क्या है? लोगों में यह भरोसा तो बैठा है कि मोदी ईमानदार हैं।

अब मोदी से ठीक उलट मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के 12 साल के शासन को देख लो। रोज कहने सुनने में आता है कि इस मुख्यमंत्री की प्रशासनिक पकड़ नहीं है। या मध्यप्रदेश में तो सरकार को अफसर ही चला रहे हैं। वो भी कुछ इने गिने। बावजूद इसके मोदी और अमित शाह के तीन साल के कार्यकाल में मध्यप्रदेश में पत्ता भी नहीं खड़क रहा। इसकी अभी भी कोई गारंटी नहीं है कि 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले मध्यप्रदेश में कोई नेतृत्व परिवर्तन होगा या नहीं। हां, इस बात की गारंटी हो सकती है कि मुख्यमंत्री रहते हुए भी शिवराज अगले चुनाव का वैसा चेहरा नहीं होंगे जैसा 2008 या 2013 में था। 

तय है कि मध्यप्रदेश में अगला विधानसभा चुनाव मोदी और शाह की जोड़ी ही लड़ेगी। 2019 जिनका लक्ष्य हो, वो 29 लोकसभा सीटों पर रिस्क कैसे ले सकते हैं? इसलिए 2018 में भी मध्यप्रदेश में जीतेंगे तो मोदी-शाह और हारेंगी तो शिवराज की एंटी इनकंबेंसी। तब तक शिवराज भले ही रहें या जाएं।

लेकिन बात अगर पार्टी में भी तानाशाही की होती तो क्या शिवराज का बने रहना संभव था? इसलिए मान लेना चाहिए कि शिवराज को बनाए रखने या हटाने का अकेला फैसला मोदी और शाह के हाथ में नहीं है। बिना आरएसएस को भरोसे में लिए भाजपा में कोई भी नेतृत्व एकतरफा फैसले नहीं ले सकता है। सरकार या भाजपा के रोज के कामों में संघ का भले ही हस्तक्षेप नहीं हो लेकिन महत्वपूर्ण फैसलों में तो होता है। संघ, संगठन से छेड़छाड़ किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं कर सकता है। उमा भारती ने किया था, सभी ने उनका हश्र देखा। लेकिन क्योंकि नरेन्द्र मोदी संघ के प्रचारक रह चुके हैं इसलिए उनसे ऐसी किसी गलती की उम्मीद करना बेमानी है।

Wednesday, 12 July 2017

मां बहन बेटी न बेटा
काम तेरे आयेगा
इस धरा का, इस धरा पर,
सब धरा रह जायेगा।
बाप भाई और चचा ये रिस्ते
नहीं हैं किसी भी काम के,
ये तो केवल सलाह देंगे
या कमी गिनायें काम में

Friday, 5 May 2017

पैतरे पर पैतरे



दिनांक 7 अक्‍टूवर 2016 को मध्‍यप्रदेश शासन सामान्‍य प्रशासन के आदेश क्रमांक एफ 5-1/2013/1/3, भोपाल दिनांक 07 अक्‍टूवर 2016 के द्वारा स्‍पष्‍ट होने के बावजूद कि मध्‍यप्रदेश के समस्‍त दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों को स्‍थाईकर्मी में विनियमित करना है एवं आदेश में उल्‍लेखित है कि ऐसे दैनिक वेतन भोगी जो 16 मई 2007 को कार्यरत थे एवं 01 सितम्‍बर 2016 को भी कार्यरत थे उनमें से कुशल श्रमिक को 5000-100-8000, अर्धकुशल श्रमिकों को 4500-90-7500 एवं अकुशल श्रमिकों को 4000-80-7000 के वेतनमान में उनके कार्यरत वर्ष के अनुसार वेतन वृद्धि का लाभ देते हुए तथा 125 प्रतिशत डी.ए. देते हुए 1 सितम्‍बर 2016 से वेतन प्रदान किया जाना है।
विभाग के संचालक द्वारा इस आदेश के तारतम्‍य में संचालक के द्वारा एक पत्र समस्‍त जिलों को जारी कर सामान्‍य प्रशासन के निर्देशों का पूर्ण रूप से पालन करने के निर्देश जारी किये थे।
1.      विभाग के कतिपय अधिकारियों को यह नागवार गुजरा और इस आदेश के क्रियान्‍वयन पर कैसे रोक लगाई जाये इस उधेडबुन में जुट गये।
2.      सर्व प्रथम तो शासन से दिशा निर्देश लेने के लिये पत्र लिख कर क्रियान्‍वयन को टालने की कोशिश की गई। जब सचिव स्‍तर से शासन के निर्देशों का पालन करने की बात की गई तो अगता पैतरा खेला गया।
3.      समस्‍त जिलों को दूसरा पत्र जारी कर यह निर्देशित किया गया कि दैनिक वेतन भोगी की वरिष्‍ठता सूची बनाकर संबंधित जिले/संभाग के कलेक्‍टर/‍कमिश्‍नर को भेज दी जायें और पल्‍ला झाड लिया जाये। भोपाल जिले के दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी संगठित हुए एवं विरोध प्रारंभ किया तो ये पैतरा भी फेल हो गया।
4.      अब अधिकारियों को समझ में आया कि अब तो स्‍थाईकर्मी के आदेश करना ही पडेंगे तो नया पैतरा खेला कि विभागीय परामर्सदात्री समिति की बैठक बुलाकर उसमें दैनिक वेतन भोगी को अकुशल, अर्धकुशल एवं कुशल में वर्गीकरण के नियम बनाये गये। जबकि नियमानुसार नियम बनाने का अधिकार विभागीय अधिकारियों को है ही नहीं या नियम बनाकर उन्‍हें शासन से अनुमोदित कराना था जो नहीं कराया गया। उमा भारती के शासनकाल के शासनकाल में निकाले गये दैनिक वेतन भोगी को पुन: सेवा में लेने के आदेश के बाद जिन निकाले गये दैनिक वेतन भोगी को 2004 में पून: सेवा में लिया गया था उन्‍हें श्रमायुक्‍त की कृषि श्रमिक की साप्‍ताहिक दर पर रखा गया था जबकि पूर्व में जिलाध्‍यक्ष की मासिक कुशल श्रमिक की दर पर कार्यरत थे। वर्ष 2013 में संचालक के आदेश से समस्‍त साप्‍ताहिक श्रमिकों को कुशल श्रमिक की मासिक दर पर भुगतान किया जाने लगा। तीस-पैंतीस वर्ष की सेवा कर चुके एवं पहले से ही कुशल श्रमिक को इस नये नियम से पुन: अकुशल श्रमिक की श्रेणी में लाकर खडा कर दिया गया। ये पैतरा सफल हो गया। इससे 2007 के बाद से कार्यरत श्रमिक जो कुशल थे अकुशल हो गये और उन्‍हें मासिक वेतन में लाभ की बजाये हानि हो रही है। उन्‍हें दो सीढी नीचे धकेल दिया गया है। इससे भोपाल जिले में ही लगभग 200 श्रमिक प्रभावित हुए हैं। चूंकि अभी श्रमिक ये देख रहे हैं कि विभाग उन्‍हें स्‍थाईकर्मी में वर्गीकृत करता है कि नहीं इसलिये शांत हैं। वर्गीकरण हो जाने के बाद कर्मचारियों में रोष उत्‍पन्‍न होगा जब उन्‍हें पहले से कम वेतन प्राप्‍त होने लगेगा।

Thursday, 27 April 2017

High Court Order

WP-8863-2015 (दिनेश दुबे परीक्षा के अपील या प्रदेश) 24-04-2017 
श्री आकाश चौधरी, याचिकाकर्ता के लिए विद्वान वकील 
श्री दिवेह जैन, प्रतिवादी / राज्य के लिए शासकीय अधिवक्ता हैं। 
वर्तमान मामले में, उत्तरदाताओं ने कई अवसरों के बावजूद उनका जवाब नहीं दायर किया है, हालांकि याचिकाकर्ता द्वारा बनाई गई प्रार्थना यह है कि दैनिक वेतन भोगी न्यूनतम वेतनमान के लाभ प्राप्त करने का हकदार है। याचिकाकर्ता ने इस तरफ उत्तरदाताओं से पहले कई अभ्यावेदन भी प्रस्तुत किये हैं, लेकिन किसी का फैसला नहीं किया गया है और न ही उत्तरदाताओं द्वारा कोई उत्तर दायर किया गया है। इन परिस्थितियों में, याचिका की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तारीख से एक सप्ताह के अंदर उत्तरदाता नंबर 1 से सामने प्रासंगिक दस्तावेज/निर्णय के साथ याचिकाकर्ता को ताजा प्रतिनिधित्व देने के निर्देश दिए जाते हैं। 
बदले में, प्रतिवादी नंबर 1 अगले छह सप्ताह की अवधि के भीतर कानून के अनुसार ही तय करेगा। 
तदनुसार, याचिका सीसी का निपटारा करती है।
प्रतिलिपि, नियमों के अनुसार
(सुबोध अभयनकर)
न्यायाधीश

Tuesday, 11 April 2017

आरक्षण

आज हम उस गलती की सजा काट रहे हैं जो हमने की ही नहीं । जिसका कारण है आरक्षण व्यवस्था। और ये नेताओं के निजी लाभ के लिए बनाई गई व्यवस्था है। आज हमारा योग्य युवा विदेशों में जा रहा है। और अयोग्य शासकीय नोकरी में।
नोकरी में आरक्षण , पदोन्नति में आरक्षण।
आरक्षण के द्वारा हिंदुओं को ही विभाजित किया जा रहा है फिर उनसे एक होकर रहने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं।
पहले समान नागरिक अचार संहिता की बात की जाए फिर राम मंदिर की बात की जाए और उसके बाद तीन तलाक की बात की जाए।
क्योंकि आजादी के बाद आरक्षण पाए लोग रिटायर हो चुके हैं 60 साल हो चुके हैं अब आरक्षण की जरूरत नहीं है। 60 साल हमने भी वही दुख झेला है ।
अब हमारे बच्चों की क्या गलती है?