About Me

भोपाल, मध्‍यप्रदेश, India
लेखक कला के क्षेत्र में सबसे पहले फिल्‍म टंट्या भील में कार्य किया जिसमें होल्‍कर पुलिस का रोल निभाया, इसके बाद फिल्‍म चक्रब्‍यूह में कार्य किया जिसमें ब्‍यूरोकेट का रोल निभाया एवं फिल्‍म सत्‍याग्रह में अनसनकारी का रोल किया जिसमें अमिताभ बच्‍चन के साथ अनसन पर बैठकर रोल किया।

Saturday, 27 December 2014

हकीकत है जूदा जीवन.....

यहां उलझन में जीबन है,
वहां कांटो पे चलना है,
पडे है पांव मै छाले,
सफर तय फिरभी करना है.

उदासी का सबब तुमको,
बता दुं क्या मेरे यारों,
खडी उस पार है नौका,
मुझे उस पार जाना है.

कठिन है रास्ता लेकिन,
जरा सा हौसला रखना.
तुझे जज्बात रखना है,
मुझे औकात रखना है.

खुदा भी रूठ जाये तो,
फरिशतो साथ देना तुम.
घडी है इम्तिहानों की,
किसी सांचे में ढलना है.

वो पैरहन नहीं है अब,
बदन कैसे छुपाऊं में.
हया रोये अकेले में,
कहां सजना संवरना है.

किताबी ग्यान का कीडा,
लगा कर लोग बैठे है.
हकीकत है जुदा जीबन,
जहां जीना है मरना है.

Monday, 8 December 2014

कर्म प्रधान

नजरिया बदल कर देखो नजारे बदल जायेंगे.
आसमां का सफर करोगे तो सितारे बदल जायेंगे.
जमाना करेगा तरीफ उन्हीं लोगों की.
जिनके कर्मों से जमाने बदल जायेंगे.

कर्म प्रधान विश्व रच राखा, को कर तरक बढ़ावे शाखा.

वर्ण व्यवस्था कर्म पर आधारित थी पर आज हम कर्म क्या कर रहे हैं इससे हमारी जाति पर कोई फर्क नहीं पड़ता है? जाति प्रथा को जिंदा रखने के लिये ही आरक्षण का प्रादूर्भाव हूआ है. आज हम आरक्षण को खत्म करने की बात करते हैं तब हम ये क्यों नहीं सोचते कि जाति को ही खत्म कर दिया जाये. जड़ पर पानी देने से तो पेड़ बड़ा ही होगा. छटाई कब तक करोगे. जड़ ही काट दोगे तो पेड़ अपने आप समाप्त हो जायेगा. पहले हम जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद को खत्म करें फिर समाजवाद लायें उसके बाद विश्व बंधूत्व की बात करें.

Sunday, 7 December 2014

गैस त्रासदी मे मेरा हाल

मैं गैस त्रासदी के समय यूनियन कार्वाईड से १ कि.मी. दूर रहता था. वो एक वगीचा था जिसमें वहूत सारे पेड़ पौधे थे. बड़ा बाग के नाम से जाना जाता है उस जगह को. रात्री में सभी सो चूके थे. में उसी दिन गांव से आया था पापा के साथ. पापा मूझे यहां छोड़कर छिंदवाड़ा की बस पकड़कर रवाना हूये थे. रात को मीर्ची जलने की महक से खांसी चालू हूई तो रूकने का नाम ही नहीं ले रही थी. मैं पड़ोसी से लड़ रहा था यह समझकर कि उन्होंने सब्जी के तड़के में मिर्ची जला दी है. पर वो मूझपर ही आरोप मढ़ रहे थे. पर जब रोड पर लोगों के भागने की और चिल्लाने की आबाज आई "भागो भागो गैस निकल गई है, इस दौरान खांसी बंद होने का नाम नहीं ले रही थी. किसी ने कहा बाहर नहीं निकलो और कोई कह रहा था बाहर निकल कर भागो. मैं बाहर िनकला तो खांसी में राहत मिली सो मैं हमीदिया हास्पिटल की ओर चल दिया खांसते हूये चला जा रहा था सूबह के ०४.०० बजे थे अंधेरे में आबाजें आ रहीं थी लोग भाग रहे थे कूछ रोड पर निढाल होकर पड़े थे कूछ मदद के लिये हाथ बढा रहे थे पर सब अपनी जांन बचा कर भाग रहे थे. किसी तरह अस्पताल पहूंचे. वहां पर गैस का असर कम था क्योंकि अस्पताल ऊंचाई पर था. गैस भारी थी निचे की ओर भरा रही थी हबा से बजनी होने के कारण. किसी तरह सूबह होने पर प्राथमिक उपचार किया गया. पापा जैसै ही सूवह बस से छिंदवाड़ा उतरे खबर लगते ही बापस भोपाल के लिये बस में वैठ गये. आसंका से घिरे हूये कि पता नहीं क्या हूआ होगा. उस समय मोबाईल भी नहीं हूआ करते थे. कि खबर हो जाती. जब घर पर पहूंचे और सही सलामत देखा तो जान मैं जान आई.

पापा कहते हैं

पापा कहते हैें....
दूनियां बहूत खराब है..
सीधे स्कूल जाऔ और घर आऔ..
किसी से रास्ते में बात मत करना..
लड़कों से दूर रहना...

Thursday, 2 October 2014

खिड़कियां

ये पेड़ों के झुरमुट,
ये चिड़ियों का जमघट,
ये फूलों का खिलना,
दिखाती हैं खिड़कियाँ.

ये वाहनों का जाना,
दुकानों का खुलना,
पैदल भरी सड़क पर चलना
दिखाती हैं खिड़कियाँ.

कभी बादल घनेरे,
कभी बूंदों की रिमझिम,
कभी तारों की टिम टिम,
दिखाती हैं खिड़कियाँ.

सुबह सूरज के दर्शन,
रात्रि चंदा की जगमग,
पत्तों का झड़ना,
दिखाती हैं खिड़कियाँ .

दूर पहाड़ों के उन्नयन,
ये झीलों की लहरें,
वायुयानों की गर्जन,
दिखाती हैं खिड़कियाँ

जब हम हों घर में अकेले,
तन निर्बल और मन हो सशंकित,
बहार की दुनियां,
दिखाती हैं खिड़कियाँ .

ये हवा के झोंके,
ये पर्दे का हिलना,
हवा के रंगों को,
दिखाती हैं खिड़कियाँ


Wednesday, 17 September 2014

गुबार रह गया बाकी.....

दिल में बस इतना सा गुबार रह गया बाकी
प्यार दोनों ही तरफ था इजहार रह गया बाकी.......

मैंने चाहा था जो, वो सब दिया उसने,
फिर भी उसपर मेरा कुछ उधार रह गया बाकी.......

उसको पाने की तमन्ना थी, पाया भी
पर नजदीकियों का एक खुमार रह गया बाकी........

दिल में बस इतना सा गुबार रह गया बाकी
प्यार दोनों ही तरफ था इजहार रह गया बाकी.......

घर तोड़ दिया लोग लेगये ईंटें
अब तो उस जगह प्लाट रह गया बाकी......

खाली जगह देख करलोगों  ने बना दी धर्मशाला
आशियां बनाने का इंतजार रह गया बाकी........

दिल में बस इतना सा गुबार रह गया बाकी
प्यार दोनों ही तरफ था इजहार रह गया बाकी.......

दर्द छिपा सकते थे, छिपा लिया हमने
जो न छिप सका, वो बुखार रह गया बाकी.......

मेरे मुर्दे ने भी अपनी आंखें खुली रख्खी,
लगता है तेरा इन्तजार रह गया बाकी......

दिल में बस इतना सा गुबार रह गया बाकी
प्यार दोनों ही तरफ था इजहार रह गया बाकी.......

बूजूर्गों का रहमो करम पहले भी था आज भी है,
बस बच्चों द्वारा आदर सत्कार रह गया बाकी.......

बच्चों को तो हमने खूब पढ़ाया लिखाया,
बस देना था जो संस्कार रह गया बाकी......

दिल में बस इतना सा गुबार रह गया बाकी
प्यार दोनों ही तरफ था इजहार रह गया बाकी.......

बच्चों की पढ़ाई, बिटिया की शादी मैं ही जानता हूं कैसे की,
अब तो अंतिम संस्कार रह गया बाकी......

आपरेशन के दौरान किडनी चूरा ली,
क्या डॉक्टरों का यही व्यापार रह गया बाकी....

दिल में बस इतना सा गुबार रह गया बाकी
प्यार दोनों ही तरफ था इजहार रह गया बाकी.......

अस्पताल में बच्चा कैसे बदल गया,
अब क्या यही कारोवार रह गया बाकी....

बाप ने लूट ली बेटी की अस्मत,
अब न अपनों पर ऎतवार रह गया बाकी......

दिल में बस इतना सा गुबार रह गया बाकी
प्यार दोनों ही तरफ था इजहार रह गया बाकी.......

दिनेश दुबे
9229547354 


Tuesday, 15 July 2014

इस्क की इन्तेहां

तू सोख नजर के तीर चला, कि दिल का कीमा बन जाए.
कीमे से तू जा चींटी को चुगा, कि हुस्न तेरा न ढल जाए.

Sunday, 15 June 2014

पिता है वो.......

वट वृक्ष है वो जिसकी जड़ें आफिस दुकान खेत खलिहान तक फैली हैं
रहते हैं इसकी छांव में
कोई भय त्रास नहीं रहता
इसकी जडें हैं बहूत फैली
खीच ही लातीं हैं रस
जो देता है सरणागत् को पनाह
पतझड़ में झड़ जाते हैं पत्ते
फिर भी उस समय की मार को झेलकर
करता है
फिर तैयारी
वही छांव देने की
नई कोमल पत्तियां लाकर
पिता है वो ………………………………… . 

Saturday, 5 April 2014

एक पिता का ईश्वर से अनुनय, बेटी को केंसर है लास्ट स्टेज पर है


भगवान् क्यों
क्यों मेरी बेटी के साथ इतना बड़ा खेल खेल रहे हो,
आखिर क्या गुनाह किया है उसने जो उसे इतनी बड़ी सजा दे रहे हो,
हर रोज तुम्हारी पूजा करती है
क्या यह गुनाह है
सारी दुनियां आपके आगे झुकती है
तो आपको क्या फर्क पड़ता है उसमे से एक कम हो गया तो,
आप तो सारे संसार के पिता हैं
पर मैं क्या करूँ मेरी तो एक ही बेटी है ना
सारे संसार के पिता हो
कभी एक बेटी के पिता बनकर देखो कितनी तकलीफ होती है
तीन साल की थी मेरी पायल तब तुमने उससे उसकी माँ को छीन लिया
तब मैं खामोश रहा
रात रात भर इन्हीं हाथों का झूला बनाकर, लोरी गाकर उसे सुलाया है,



मत करो भगवान् ऐसा मत करो
यदि जान ही लेनी है तो मेरी ले लो
मगर कोई भी बेटी का बाप अपनी बच्ची को मरते हुए नहीं देख सकता,
भगवान, नहीं देख सकता