About Me

भोपाल, मध्‍यप्रदेश, India
लेखक कला के क्षेत्र में सबसे पहले फिल्‍म टंट्या भील में कार्य किया जिसमें होल्‍कर पुलिस का रोल निभाया, इसके बाद फिल्‍म चक्रब्‍यूह में कार्य किया जिसमें ब्‍यूरोकेट का रोल निभाया एवं फिल्‍म सत्‍याग्रह में अनसनकारी का रोल किया जिसमें अमिताभ बच्‍चन के साथ अनसन पर बैठकर रोल किया।

Wednesday, 16 August 2017

तपती गर्मी में छांव सी मां....

तपती गर्मी में छाँव सी माँ !

तपती गर्मी में छाँव सी माँ
रिसते जख्मों पर दवाओं सी माँ

नन्हें पैरों की जुराबों सी माँ
ऊनी टोपी सी दुआओं सी माँ

परियों की कहानी-कथाओं सी माँ
आशीषों सी माँ और सुझावों सी माँ

समरसता की मूरत पर झुकाव सी माँ
मिटटी के खिलोने, कागज़ की नाव सी माँ

ममता के आँगन में हारी सी माँ
कभी नहीं थकती ये प्यारी सी माँ

बच्चे की चोटों पर सहमी सी माँ
पीर-फकीरों पर रहमी सी माँ

आँगन के झूले और पलने सी मां
फिर बूढे की मॉं हो या ललने की मॉ

प्रेम प्यार उपकार नहीं सहज कर्म और निष्छल है
वह केवल मॉ का दिल है जो गंगा जल सा निर्मल है
मॉ के लिये तो बेटा बेटी रहते हैं एक समान यहॉ
भले हो पृथ्वी गोल यहॉ पर मॉ का ऑचल समतल है





Wednesday, 9 August 2017

फिजूल है मोदी या शाह को कोसना

क्या नरेन्द्र मोदी और अमित शाह भाजपा में तानाशाह की भूमिका में हैं? जिन सिद्धांतों पर लड़ाई लड़ने के लिए भाजपा का जन्म हुआ था, क्या वो रास्ता यह पार्टी छोड़ चुकी है। और आज की भाजपा में कार्यकर्ता तो दूर मंत्रियों की भी आवाज नहीं निकलती। ये कुछ प्रतिक्रियाएं हैं जो सोमवार के फर्स्ट कालम, भाजपा का यह मौजूदा दौर कब तक...पर सामने आईं हैं। सत्ता की अपनी स्वाभाविक बुराईयां होती है। जाहिर है हर जगह तो भाजपा इससे अछूत हो नहीं सकती। 

दूसरा भाजपा अगर अपने आपको लचीला नहीं बनाती तो उसका यह मौजूदा दौर भी कोसों दूर होता है। और भाजपा ने यह राजनीति कोई नरेन्द्र मोदी या अमित शाह के राष्ट्रीय स्तर पर हुए प्रादुर्भाव के बाद तो सीख नहीं ली। लंबा समय लगा है, भाजपा को राजनीति सीखने के लिए। जाहिर है राजनीति के दांवपेंच भी आप उससे ही तो सीखेेंगे जो सत्ता में मौजूद है। तो इसमें शक नहीं कि कांग्रेस से विरोध के बावजूद भी भाजपा ने सीखा तो सबकुछ कांग्रेस से ही है। इसका दर्द भाजपा में दो तरह के लोगों को हो सकता है। एक जिनकी सत्ता में उपेक्षा हो रही है और दूसरे वे जो खांटी टाईप के जनसंघी मानसिकता के कार्यकर्ता हैं।

दलबदल, जनप्रतिनिधियों की खरीद फरोख्त, राज्यों की सरकारों को गिराना, बनाना, बर्खास्त करना क्या यह सिर्फ पिछले तीन सालों की कहानी है। सीबीआई सहित तमाम जांच एजेंसियों के दुरूपयोग के मामले क्या इस देश में नए हैं? वैसे भी एक स्थापित तथ्य है कि राज करने में नीति कहीं नहीं होती। गवर्नेंस की नीति तो हो सकती है। लेकिन राजनीति के साथ तो साम-दाम-दंड-भेद शास्वत रूप से जुडेÞ हैं। तो भाजपा जो कर रही है, उसके लिए मोदी या शाह को कोसना फिजूल है। 

सोमवार को ही पूर्वोत्तर के त्रिपुरा में तृणमूल कांग्रेस से निष्कासित छह विधायक भाजपा में शामिल हो गए और कम्युनिस्टों के इस राज्य में भाजपा ने विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल का दर्जा हासिल कर लिया। त्रिपुरा में भाजपा का कोई नामलेवा भी नहीं है। लेकिन अपने संगठन कौशल में निपुण भाजपा को आखिर पैर रखने का मौका तो मिला या नहीं। आज उत्तरपूर्व में देख लें, असम जैसे बड़े राज्य सहित मणिपुर में भी उसकी सत्ता है और इसलिए सेवन सिस्टर्स में उसका दखल हर कहीं थोड़ा बहुत तो हो ही गया है। 

रही बात नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के तानाशाह होने की तो मध्यप्रदेश पर ही गौर कर लीजिए। नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बने तीन साल पूरे हो गए लेकिन क्या वे शिवराज सिंह चौहान का बाल भी बांका कर पाएं। मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही इन चर्चाओं ने कई बार जोर पकड़ा कि शिवराज अब गए, तब गए। मोदी जितनी बार भी प्रधानमंत्री बनने के बाद मध्यप्रदेश आए, उनकी बाडी लेंग्वेज ने कभी भी यह नहीं दर्शाया कि वे शिवराज सिंह चौहान से खुश हैं।

 मोदी की प्रशासनिक क्षमताएं और पकड़, काम करने की उनकी अपनी शैली हो सकता है कि लोगों को उनमें एक दृढ़ शासक का आभास कराती हो। यह भी एक तथ्य है कि इस समय पीएमओ की जैसी कार्यशैली है, शायद वो पहले के प्रधानमंत्रियों के बिल्कुल विपरीत है। कांग्रेस के भ्रष्टाचार को सामने रखकर मोदी ने देश की जनता को अपने ईमानदार होने का भरोसा दिलाया था। इसलिए मोदी अगर अपने मंत्रियों और अफसरों पर सख्त हो तो इसमें बुराई भी क्या है? लोगों में यह भरोसा तो बैठा है कि मोदी ईमानदार हैं।

अब मोदी से ठीक उलट मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के 12 साल के शासन को देख लो। रोज कहने सुनने में आता है कि इस मुख्यमंत्री की प्रशासनिक पकड़ नहीं है। या मध्यप्रदेश में तो सरकार को अफसर ही चला रहे हैं। वो भी कुछ इने गिने। बावजूद इसके मोदी और अमित शाह के तीन साल के कार्यकाल में मध्यप्रदेश में पत्ता भी नहीं खड़क रहा। इसकी अभी भी कोई गारंटी नहीं है कि 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले मध्यप्रदेश में कोई नेतृत्व परिवर्तन होगा या नहीं। हां, इस बात की गारंटी हो सकती है कि मुख्यमंत्री रहते हुए भी शिवराज अगले चुनाव का वैसा चेहरा नहीं होंगे जैसा 2008 या 2013 में था। 

तय है कि मध्यप्रदेश में अगला विधानसभा चुनाव मोदी और शाह की जोड़ी ही लड़ेगी। 2019 जिनका लक्ष्य हो, वो 29 लोकसभा सीटों पर रिस्क कैसे ले सकते हैं? इसलिए 2018 में भी मध्यप्रदेश में जीतेंगे तो मोदी-शाह और हारेंगी तो शिवराज की एंटी इनकंबेंसी। तब तक शिवराज भले ही रहें या जाएं।

लेकिन बात अगर पार्टी में भी तानाशाही की होती तो क्या शिवराज का बने रहना संभव था? इसलिए मान लेना चाहिए कि शिवराज को बनाए रखने या हटाने का अकेला फैसला मोदी और शाह के हाथ में नहीं है। बिना आरएसएस को भरोसे में लिए भाजपा में कोई भी नेतृत्व एकतरफा फैसले नहीं ले सकता है। सरकार या भाजपा के रोज के कामों में संघ का भले ही हस्तक्षेप नहीं हो लेकिन महत्वपूर्ण फैसलों में तो होता है। संघ, संगठन से छेड़छाड़ किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं कर सकता है। उमा भारती ने किया था, सभी ने उनका हश्र देखा। लेकिन क्योंकि नरेन्द्र मोदी संघ के प्रचारक रह चुके हैं इसलिए उनसे ऐसी किसी गलती की उम्मीद करना बेमानी है।

Wednesday, 12 July 2017

मां बहन बेटी न बेटा
काम तेरे आयेगा
इस धरा का, इस धरा पर,
सब धरा रह जायेगा।
बाप भाई और चचा ये रिस्ते
नहीं हैं किसी भी काम के,
ये तो केवल सलाह देंगे
या कमी गिनायें काम में

Friday, 5 May 2017

पैतरे पर पैतरे



दिनांक 7 अक्‍टूवर 2016 को मध्‍यप्रदेश शासन सामान्‍य प्रशासन के आदेश क्रमांक एफ 5-1/2013/1/3, भोपाल दिनांक 07 अक्‍टूवर 2016 के द्वारा स्‍पष्‍ट होने के बावजूद कि मध्‍यप्रदेश के समस्‍त दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों को स्‍थाईकर्मी में विनियमित करना है एवं आदेश में उल्‍लेखित है कि ऐसे दैनिक वेतन भोगी जो 16 मई 2007 को कार्यरत थे एवं 01 सितम्‍बर 2016 को भी कार्यरत थे उनमें से कुशल श्रमिक को 5000-100-8000, अर्धकुशल श्रमिकों को 4500-90-7500 एवं अकुशल श्रमिकों को 4000-80-7000 के वेतनमान में उनके कार्यरत वर्ष के अनुसार वेतन वृद्धि का लाभ देते हुए तथा 125 प्रतिशत डी.ए. देते हुए 1 सितम्‍बर 2016 से वेतन प्रदान किया जाना है।
विभाग के संचालक द्वारा इस आदेश के तारतम्‍य में संचालक के द्वारा एक पत्र समस्‍त जिलों को जारी कर सामान्‍य प्रशासन के निर्देशों का पूर्ण रूप से पालन करने के निर्देश जारी किये थे।
1.      विभाग के कतिपय अधिकारियों को यह नागवार गुजरा और इस आदेश के क्रियान्‍वयन पर कैसे रोक लगाई जाये इस उधेडबुन में जुट गये।
2.      सर्व प्रथम तो शासन से दिशा निर्देश लेने के लिये पत्र लिख कर क्रियान्‍वयन को टालने की कोशिश की गई। जब सचिव स्‍तर से शासन के निर्देशों का पालन करने की बात की गई तो अगता पैतरा खेला गया।
3.      समस्‍त जिलों को दूसरा पत्र जारी कर यह निर्देशित किया गया कि दैनिक वेतन भोगी की वरिष्‍ठता सूची बनाकर संबंधित जिले/संभाग के कलेक्‍टर/‍कमिश्‍नर को भेज दी जायें और पल्‍ला झाड लिया जाये। भोपाल जिले के दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी संगठित हुए एवं विरोध प्रारंभ किया तो ये पैतरा भी फेल हो गया।
4.      अब अधिकारियों को समझ में आया कि अब तो स्‍थाईकर्मी के आदेश करना ही पडेंगे तो नया पैतरा खेला कि विभागीय परामर्सदात्री समिति की बैठक बुलाकर उसमें दैनिक वेतन भोगी को अकुशल, अर्धकुशल एवं कुशल में वर्गीकरण के नियम बनाये गये। जबकि नियमानुसार नियम बनाने का अधिकार विभागीय अधिकारियों को है ही नहीं या नियम बनाकर उन्‍हें शासन से अनुमोदित कराना था जो नहीं कराया गया। उमा भारती के शासनकाल के शासनकाल में निकाले गये दैनिक वेतन भोगी को पुन: सेवा में लेने के आदेश के बाद जिन निकाले गये दैनिक वेतन भोगी को 2004 में पून: सेवा में लिया गया था उन्‍हें श्रमायुक्‍त की कृषि श्रमिक की साप्‍ताहिक दर पर रखा गया था जबकि पूर्व में जिलाध्‍यक्ष की मासिक कुशल श्रमिक की दर पर कार्यरत थे। वर्ष 2013 में संचालक के आदेश से समस्‍त साप्‍ताहिक श्रमिकों को कुशल श्रमिक की मासिक दर पर भुगतान किया जाने लगा। तीस-पैंतीस वर्ष की सेवा कर चुके एवं पहले से ही कुशल श्रमिक को इस नये नियम से पुन: अकुशल श्रमिक की श्रेणी में लाकर खडा कर दिया गया। ये पैतरा सफल हो गया। इससे 2007 के बाद से कार्यरत श्रमिक जो कुशल थे अकुशल हो गये और उन्‍हें मासिक वेतन में लाभ की बजाये हानि हो रही है। उन्‍हें दो सीढी नीचे धकेल दिया गया है। इससे भोपाल जिले में ही लगभग 200 श्रमिक प्रभावित हुए हैं। चूंकि अभी श्रमिक ये देख रहे हैं कि विभाग उन्‍हें स्‍थाईकर्मी में वर्गीकृत करता है कि नहीं इसलिये शांत हैं। वर्गीकरण हो जाने के बाद कर्मचारियों में रोष उत्‍पन्‍न होगा जब उन्‍हें पहले से कम वेतन प्राप्‍त होने लगेगा।

Thursday, 27 April 2017

High Court Order

WP-8863-2015 (दिनेश दुबे परीक्षा के अपील या प्रदेश) 24-04-2017 
श्री आकाश चौधरी, याचिकाकर्ता के लिए विद्वान वकील 
श्री दिवेह जैन, प्रतिवादी / राज्य के लिए शासकीय अधिवक्ता हैं। 
वर्तमान मामले में, उत्तरदाताओं ने कई अवसरों के बावजूद उनका जवाब नहीं दायर किया है, हालांकि याचिकाकर्ता द्वारा बनाई गई प्रार्थना यह है कि दैनिक वेतन भोगी न्यूनतम वेतनमान के लाभ प्राप्त करने का हकदार है। याचिकाकर्ता ने इस तरफ उत्तरदाताओं से पहले कई अभ्यावेदन भी प्रस्तुत किये हैं, लेकिन किसी का फैसला नहीं किया गया है और न ही उत्तरदाताओं द्वारा कोई उत्तर दायर किया गया है। इन परिस्थितियों में, याचिका की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तारीख से एक सप्ताह के अंदर उत्तरदाता नंबर 1 से सामने प्रासंगिक दस्तावेज/निर्णय के साथ याचिकाकर्ता को ताजा प्रतिनिधित्व देने के निर्देश दिए जाते हैं। 
बदले में, प्रतिवादी नंबर 1 अगले छह सप्ताह की अवधि के भीतर कानून के अनुसार ही तय करेगा। 
तदनुसार, याचिका सीसी का निपटारा करती है।
प्रतिलिपि, नियमों के अनुसार
(सुबोध अभयनकर)
न्यायाधीश

Tuesday, 11 April 2017

आरक्षण

आज हम उस गलती की सजा काट रहे हैं जो हमने की ही नहीं । जिसका कारण है आरक्षण व्यवस्था। और ये नेताओं के निजी लाभ के लिए बनाई गई व्यवस्था है। आज हमारा योग्य युवा विदेशों में जा रहा है। और अयोग्य शासकीय नोकरी में।
नोकरी में आरक्षण , पदोन्नति में आरक्षण।
आरक्षण के द्वारा हिंदुओं को ही विभाजित किया जा रहा है फिर उनसे एक होकर रहने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं।
पहले समान नागरिक अचार संहिता की बात की जाए फिर राम मंदिर की बात की जाए और उसके बाद तीन तलाक की बात की जाए।
क्योंकि आजादी के बाद आरक्षण पाए लोग रिटायर हो चुके हैं 60 साल हो चुके हैं अब आरक्षण की जरूरत नहीं है। 60 साल हमने भी वही दुख झेला है ।
अब हमारे बच्चों की क्या गलती है?

Friday, 3 March 2017

दैनिक वेतन भोगी या बनिये के नोकर

मध्‍यप्रदेश शासन में एक विभाग ऐसा भी है जो अपने आप को शासन से अलग मानता है। ये है उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्‍करण विभाग। शासन स्‍तर पर तो इसका नाम बदल कर उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्‍करण कर दिया गया है परन्‍तु संचालक स्‍तर पर आज भी उद्यानिकी एवं प्रक्षेत्र वानिकी ही चल रहा है। उद्यानिकी विभाग में भी एक सहायक संचालक उद्यान (प्रमुख उद्यान) भोपाल ऐसा है जो राजधानी का प्रमुख अंग होने के बाद भी इसके प्रमुख के पद पर एक कनिष्‍ठ अधिकारी को प्रभारी बनाकर बैठा रखा है। ये पद ऐसा है कि जिसे सारे मंत्री, सारे आई ए एस और वरिष्‍ठ अधिकारियों की सुनना पडती है। संचालक स्‍तर से जो आदेश एवं निर्देश जारी होते हैं उनको जिलों में तो मान्‍य कर लिया जाता है परन्‍तु संचालक की नाक के नीचे सहायक संचालक उद्यान प्रमुख उद्यान भोपाल संचालक के भी आदेश को पालन करने के पहले संचालक से कनिष्‍ठ अधिकारियों से पूछ पूछ कर काम करते हैं।
मध्‍यप्रदेश शासन जबकि दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों एवं गैंगमेनों को स्‍थाई कर्मी में विनियमितीकरण करने के स्‍पष्‍ट आदेश जारी कर चुका है एवं संचालक उद्यानिकी एवं प्रक्षेत्र वानिकी ने भी उक्‍त आदेश को संलग्‍न कर अपना कवरिंग लेटर लगाकर समस्‍त जिलाें के उप/सहायक संचालक एवं प्रमुख उद्यानों के सहायक संचालक को स्‍पष्‍ट निर्देश दिये हैं कि शासन के आदेश पर नियमानुसार कार्यवाही करें फिर भी सहायक संचालक उद्यान प्रमुख उद्यान के प्रभारी कोई कार्यवाही करने से पहले संचालक से क‍निष्‍ठ अधिकारियेां से पूछ रहे हैं कि कैसे क्‍या करना है।
30 वर्ष विभाग की सेवा कर के जो दैनिक वेतन भोगी रिटायर्ड  हो गये हैं उन्‍हें उपादान की राशि का भुगतान करने के शासन के स्‍पष्‍ट निर्देश होने के बाद भी सहायक संचालक उद्यान प्रमुख उद्यान द्वारा उपादान राशि का भुगतान करने में कोर्ट के आदेश को भी मानने को तैयार नहीं हैं। कोर्ट ने 7 रिटायर्ड दैनिक वेतन भाेगी कर्मचारियों को उपादान राशि लगभग 15.00 लाख का भुगतान करने के निर्देश दिये हैं। 120 दिन व्‍यतीत हो जाने के बाद भी न तो विभाग द्वारा अपील की गई न ही भुगतान किया गया।
अब एक नया बहाना बनाया जा रहा है कि भोपाल में प्रमुख उद्यान में तो दैनिक वेतन भोगी को रोज रखा एवं रोज निकाला जाता है अत: ये उपादान के हकदान नहीं हैं। मैं ये पूछना चाहता हूं कि जब रोज रखा जाता एवं रोज निकाला जाता है तो इन दैनिक वेतन भोगी को लगभग 30 वर्ष सेवा काल में एक भी बार क्‍यों नहीं निकाला गया। अब जब वे उपादान राशि की मांग कर रहे हैं तो ये बहाना क्‍यों बनाया जा रहा है कि रोज रखते और रोज निकालते हैं। लगभग 400 दैनिक वेतनभोगी पिछले 40 साल से लगातार क्‍यों काम कर रहे हैं. जब इतने आदमी की लगातार आवश्‍यकता रहती है तो शासन के इसकी मंजूरी क्‍यों नहीं ली गई। क्‍या इनके बिना मुख्‍यमंत्री निवास उद्यान, राजभवन उद्यान, एवं भोपाल की 6 नर्सरी एवं आई ए एस के घरों पर स्थित उद्यानों का रखरखाव संभव है।
विभाग में संचालक पद पर पिछले कई वर्ष से कोई आई ए एस या आई एफ एस की पदस्‍थापना शाासन करता आया है जो कुछ समय के लिये आता है जब तक वो विभाग के बारे में समझता है तब तक उसे हटाकर किसी दूसरे काे बैठा दिया जाता है। विभागीय वरिष्‍ठ अधिकारी को संचालक के पद पर पदस्‍थ नहीं किया जाता है जिससे वे हतोत्‍साहित होकर विभाग के विरूद्ध निर्णय लेकर विभाग को डुबाने में लगे हैं। एवं संचालक की चापलूसी कर संचालक को भी सही स्‍थिति से अवगत नहीं कराकर उसे भी भृमित करते रहते हैं।
शासन स्‍तर से जो निर्देश जारी हो चुकेे हैं उन्‍हें समझने की कोशिस न करते हुऐ शासन को हीे बार बार पत्र लिखकर मत मांगा जाता है। शासन ने भी कई बार पत्र जारी कर विभागीय स्‍तर से कार्यवाही करने के निर्देश दिये हैं परन्‍तु विभाग के अधिकारी अपनी हरकतों से बाज नहीं आते हैं बार बार शासन को परेशान करते हैं और कर्मचारी को उलझाते रहते हैं।

Monday, 6 February 2017

कृष‍ि श्रमिक बनाम दैनिक वेतन भोगी

कृषि श्रमिक काे जो श्रमायुक्‍त द्वारा परिभाषित किया गया है उसके अनुसार कृष‍ि श्रमिक वे श्रमिक होते हैं जिन्‍हें फसल कटाई एवं निंदाई गुडाई के समय इसी कार्य हेतु लगाया जाता है तथा कार्य पूर्ण होने तक ही उनकी आवश्‍यकता होती है अर्थात कार्य पूर्ण होने पर उन्‍हें मजदूरी देकर उनकी सेवा समाप्‍त कर दी जाती है। श्रमायुक्‍त ने कृषि श्रमिकों की दैनिक एवं साप्‍ताहिक दरें इसी उदद्येश्‍य से ही निर्धारित की हैं तथा समय-समय पर इनमें इजाफा होता रहता है। उद्यानिकी विभाग में भोपाल में 8 नर्सरियां थीं वर्तमान में 6  बची हैं तीन नर्सरी इन्‍हीं अधिकारयों की लापरवाही से बंद हाे गई हैं। इन नर्सरियों में 102 कार्यभारित माली के पद स्‍वीकृत थे जो अतिशेष कर दिये गये हैं उनमें से लगभग 45 कार्यभारित माली शेष बचे हैं। वाकी वर्ष 1988 के पूर्व के 235 दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी कार्यरत थे उसमें से भी वर्तमान में 105 ही बचे हैं। वर्ष 1988 के बाद जिन दैनिक वेतन भोगी को रखा गया उन्‍हें भी जिलाधक्ष द्वारा निर्धारित वेतन दिया जाता था। ये कर्मचारी भोपाल की 8 नर्सरियों में निंदाई गुडाई के साथ बडिंग ग्रा‍फटिंग हेज कटिंग और सेलिंग सेन्‍टर के लिये बूटी एवं कलम के द्वारा पौधे तैयार करने का कर्य करते हैं। कृषि नियोजन का कार्य भोपाल में कहीं नहीं होता है परन्‍तु जानबूझ कर मजदूरों पर तानाशाही करने के उदद्येश्‍य से उद्यान विभाग में कृषि नियोजन लागू किया गया। बडे संघर्ष के बाद वर्ष 2013 में कृषि नियोजन को समाप्‍त किया जा सका।
उद्यानिकी विभाग का नाम पहले उद्यानिकी एवं प्रक्षेत्र वानिकी था जिसे बदलकर उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्‍करण कर दिया गया है। जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है कि विभाग में कोई फसल कटाई का कार्य नहीं होता है अत: विभाग में कृषि श्रमिक का कोई काम नहीं होना चाहिए।
परन्‍तु अधिकारियों की मनमानी एवं तानाशाही के चलते वर्ष 1997 में तत्‍कालीन संचालक ने मजदूरी का खर्चा कम करने के उददेश्‍य से विभाग में वर्ष 1988 के बाद से कार्यरत दैनिक वेतन भोगी माली कर्मचारी को पहले तो नौकरी से निकाल दिया जब कार्य प्रभावित होने लगा तो उन्‍हें जो पूर्व में मासिक जिलाध्‍यक्ष की दर पर कार्यरत थे, साप्‍ताहिक कृष‍ि श्रमिक की दर पर बापस रख लिया। बेचारे नौकरी जाने के डर से कम पैसे में कार्य करने को मजबूर हो गये। इन्‍हें सप्‍ताह में 6 दिन का वेतन देकर पूरे 7 दिन कार्य कराया जाता रहा अर्थात माह में इन्‍हें केवल 26 दिन की ही मजदूरी मिलती रही एवं कोई शासकीय अवकाश की पात्रता भी नहीं रखी। इन्‍हें कभी भी कार्य से बंद कर नये लोगों को भर्ती कर लिया जा‍ता रहा।
अधिकारियों को वर्ष 1988 के बाद के मजदूरों को फिर से रखने के लिये इसलिये मजबूर होना पडा क्‍योंकि भोपाल में ये मजदूर श्रमिक माननीय मुख्‍यमंत्री निवास उद्यान, राजभवन उद्यान, समस्‍त मंत्री निवास उद्यानों एवं आईएएस और आईपीएस के साथ साथ विभागीय अधिकारियों के घरों में भी घर के बगीचे में साग-भाजी उगाने से लेकर उनके घर के झाडू-पौंछा  और चौका-बरतन तक करते हैं।



Saturday, 28 January 2017

न्‍यूनतम वेतन अ‍धिनियम 1948

उद्यान विभ्‍ााग के दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी को वर्ष 1997 में जिलाध्‍यक्ष द्वारा निर्धारित मासिक वेतन से हटाकर श्रमायुक्‍त द्वारा निर्धारित कृष्‍ाि नियोजन की साप्‍ता‍हकि दर पर भुगतान करने के पीछे मकसद अधिकारियों का उद्देश्‍य केवल मजदूरी में खर्चा कम करना था। इस निर्णय से मजदूरों के साथ जाे कुठाराघात हुआ उसकी किसी को चिंता नहीं थी। वेचारे मजदूर इस बात को समझ नहीं पाये क्‍योंकि उसी समय की कांग्रेस सरकार ने सारे दैनिक वेतन भोगियों को निकालने का फरमान जारी कर दिया था अत: अपनी नौकरी बचाने के चक्‍कर में कम मजदूरी में काम करने का समझौता करना पडा। उमा भारती सरकार द्वारा जब दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों को बापस काम पर लेने का निर्णय लिया गया तथा हटाते समय एवं पुन: काम पर लेने के बीच जो सर्विस ब्रेक को सर्विस ब्रेक न मानते हुऐ उन्‍हें वापस उसी स्‍थ्‍ा‍िति में वहाल कर दिया गया जिस स्‍थ‍िति में वे पूर्व में कार्यरथ थे। पर उद्यानिकी विभाग ने उन्‍हें उसी स्थिति में बहाल न कर मासिक के स्‍थान पर साप्‍ताहिक कृष‍ि श्रमिक पर बापस लिया और वे जो मिला उसी में आने काे तैयार हो गये। 1997 से 2013 तक दैनिक वेतन भोगी मजदूरों को उद्यानिकी विभाग विभाग द्वारा साप्‍ताहिक मजदूरी का भुगतान किया जाता रहा। इसी बीच कई बार पत्राचार करने और चर्चा करने पर दिनांक 17.06.2016 को विभाग ने पत्र जारी कर न्‍यूनतम वेतन अधिनियम 1948 का हवाला देकर कृषि नियोजन दर समाप्‍त कर उन सभी दैनिक वेतन भोगी को जाे 1997 से 2013 तक साप्‍ताहिक दर पर कार्य कर रहे थे उन्‍हें दैनिक मासिक कुशल श्रमिक की दर पर भुगतान के निर्देश जारी कर दिये। 2013 से सभी कर्मचारी श्रमायुक्‍त द्वारा निर्धारित कुशल श्रमिक की दर से भुगतान प्राप्‍त कर रहे हैं। इसी बीच शासन के 10 वर्ष एवं 20 वर्ष से सेवा रत दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों को क्रमश: 500 एवं 1000 रूपये मासिक विशेष भत्‍ता देने निर्देश जारी हुए इसी तारतम्‍य में विभाग द्वारा भी सभी जिलों को निर्देश जारी किये गये। जिलों में तो विशेष भत्‍ता देना प्रारंभ कर दिया गया परन्‍तु राजधानी होने के बावजूद भोपाल के सहायक संचालक उद्यान प्रमुख उद्यान भोपाल ने आज तक विशेष भत्‍ता देना प्रारंभ नहीं किया है। सुप्रमि कोर्ट के निर्णय के अनुसार मध्‍यप्रदेश शासन ने दैनिक वेतन भोगी श्रमिाकों गैंगमेनों को स्‍थाई कर्मी घोषित कर उनके लिये अकुशल, अर्द्धकुशल एवं कुश्‍ाल श्रेणी के क्रमश: तीन वेतनमान निर्धारित किये हैं जो उन्‍हें दिनांक 1 सितम्‍वर 2016 से देय हैं। इस निर्देश के बाद भी विभागीय अधिकारी असमंजस में पडे हैं कि अब दैनिक वेतन भोगियों को अभी तक विशेष भत्‍ता भी नहीं दिया है और अब स्‍थाई कर्मी का वेतन देने के निर्देश जारी हो गये है तो ये दाेनो कार्य कैसे किये जायें। अधिकारियों की रातों की नींद हराम हो गई है। इसी उधेडबुन में लगे हैं कि अब पहले तो 2008 से 2016 तक विशेष भत्‍ते का एरियर्स लगभग प्रत्‍येक श्रमिक का लगभग 48000 रूपये बनता है उसका भुगतान करना है तथा उसके बाद सितम्‍बर 2016 से अभी तक का स्‍थाई कर्मी का एरियर्स भी भुगतान करना पडेगा जो लगभग 5000 रूपये प्रतिमाह 5 माह का ही 25000 रूपये बनता है यह भी जब तक बढता जायेगा जब तक वेतन में नहीं लगा दिया जाता है। अत: अब इसी उधेडबुन में लगे हैं कि किस प्रकार इस खर्चे को कम किया जाये। अब कर्मचारी जाग्रत हो चुका है तथा आंदोलन की रूपरेखा बना रहा है अत: अब विभाग को चेत जाना चाहिये और पारदर्शिता अपनाते हुए तथा श्रमिक के हित में शाासन द्वारा लिये गये निर्णय का अक्षरश: पालन सुनिश्‍चित करना चाहिये बरना यह आंदोलन का रूप ले लेगा और अभी तक जो कर्मचारी विरोधी गतिविधियां विभाग में चल रहीं हैं उन्‍हें उजागर कर प्रदर्शन एवं हडताल भी प्रारंभ हो जायेंगे। अभी तो केबल भोपाल में ये मीटिंग के माध्‍यम से कर्मचारी को जाग्रत किया जा रहा है इसके बाद पूरे प्रदेश में इसे प्रचारित किया जायेगा और निश्चित ही यह आंदोलन पूरे प्रदेश स्‍तर पर प्रारंभ होने में ज्‍यादा समय नहीं लगेगा।

Saturday, 21 January 2017

पिताजी आप पिटे सो पिटे हम सब को क्‍यों पिटवाया

ट्रेन में एक परिवार सफर कर रहा था
परिवार में पिता माता पुत्र पुत्री चार लोग थे।
उनके सामने एक गुंडा टाईप का आदमी बैठा था।
गुंडे ने उस परिवार की लडकी को छेड. दिया।
पिता ने गुंडे से कहा कि तुम अपने आप काे क्‍या समझते हो
मैं तुम्‍हें अगले स्‍टेशन पर देखता हूँ। पुलिस बुलाकर तुम्‍हें अंदर करवा दूंगा।
इतने में गुंडे ने पिताजी को एक थप्‍पड रशीद कर दिया।
फिर पिता बोला कि अच्‍छा तुम्‍हारी हिम्‍मत
तुमने मुझे थ्‍प्‍पड मारा
मुझे मारा सो मारा मेरी बीबी को मत मार देना
नहीं तो मैं बहूत बुरा आदमी हॅूं
अभी तुम मुझे जानते नहीं हो
इतने में गुंडे ने उसकी बीबी को भी एक थ्‍प्‍पड रशीद कर दिया
पिता बोला अच्‍छा तुम्‍हारी इतनी हिम्‍मत
पता नहीं तुम्‍हें मैं क्‍या समझकर छोड रहा हूं।
पर मैं तुम्‍हें अगले स्‍टेशन पर बताउंगा कि मैं क्‍या हूँ
तुम्‍हारी गुण्‍डई निकल जायेगी यदि तुमने मेरे बेटे काे मारा
फिर गुण्‍डे ने बेटे काे भी एक थ्‍प्‍पड मार दिया
फिर पिता बोला यदि तुमने मेरी बेटी को मार दिया तो मैं तुम्‍हारा
यहीं मडर कर दूंगा।
इस पर गुंडे ने उसकी बेटी को भी एक थप्‍पड जड दिया
इसके बाद वे सब शांत बैठ गये
गुंडा अगले स्‍टेशन पर उतर का चला गया
यह परिवार भी अपने घर पहुंचा
घर पर बेटे ने पिताजी से पूछा कि
आप तो पिटे सो पिटे
हम सब को क्‍यों पिटवाया
इस पर पिताजी ने जवाब दिया
यदि मैं तुम सब को नहीं पिटवाता तो तुम सब
घर पर आकर मुझे चिढाते कि
क्‍यों पिताजी कैसे पिटे
मजा आया;;;;
 

Tuesday, 10 January 2017

क्‍या उद्यान विभाग के दैनि‍क वेतन भाेेगी इन्‍सान नहींं हैं

दिनांक १०.०१.२०१७

     आज श्री सत्‍यानंद संचालक उद्यानिकी से मुलाकात की तथा उन्‍हें उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों द्वारा दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों के साथ जो अन्‍याय किया जा रहा है उससे अवगत कराया।
     राज्‍य शासन ने दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों एवं गैंगमेन को 1 सितम्‍बर 2016 से स्‍थाईकर्मी घोषित कर उनके लिये नियमित वेतनमान निर्धारित कर दिया है जो उन्‍हें दिनांक 1 सितम्‍बर 2016 से देय है।
     अधिकतर विभागों ने इस आदेश का पालन करते हुए दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को स्‍थाई कर्मी के लिये निर्धारित वेतन देना प्रारंभ कर दिया है। तथा उनकी वरिष्‍ठता सूची बनाकर रिकार्ड कलेक्‍टर को भेजना भी आरंभ कर दिया है। पर उद्यानिकी विभाग के अधिकारी हमेशा की तरह उल्‍टे चलते हुए दैनिक वेतन भोगी को स्‍थाई कर्मी न बनाते हुऐ पहले जानकारी शासन को भेज रहे हैं तथा शासन से पूछ रहे हैं कि क्‍या करना है। या तो इन्‍हें शासन के नियम व निर्देश समझ में नहीं आते या जानबूझ कर समझना नहीं चाहते। शासन ने भी कई बार विभागीय संचालक को निर्देश दिये हैं कि जारी निर्देश का पालन करने के लिये बार बार शासन से न पूछा जावे। शासन के निर्देशों को अपने स्‍तर से पालन सुनिश्चित करें। परन्‍तु विभाग के अधिकारियों ने तो जैसे कर्मचारी को परेशान करने की कसम ही खा रखी है।
     शासन के स्‍पष्‍ट निर्देश है कि दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी को 62 वर्ष की आयु में सेवा मुक्‍त किया जाये तथा उन्‍हें अर्धवार्षिकी आयु के आधार पर उपादान राशि का भुगतान किया जावे।
     पर विभाग ने शासन का ये नियम तो तुरन्‍त समझ में आ गया कि दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी को 62 वर्ष की आयु में सेवा मुक्‍त करना है पर यह दिखाई नहीं दिया कि उन्‍हें उपादान राशि भी देना है। उद्यान विभाग के लगभग 50 दैनिक वेतन भोगी को आयु का मेडीकल कराकर सेवा मुक्‍त कर दिया गया परन्‍तु उन्‍हें आज तक उपादान राशि का भुगतान नहीं किया। बेचारे भीख मांगने को मजबूर हैं।
     मध्‍यप्रदेश शासन का दैनिक वेतन भोगी आभार व्‍यक्‍त करते हैं कि देर से ही सही परन्‍तु माननीय शिवराज सिंह चौहान ने उनके हित में निर्णय लिया तो सही पर यह निर्णय उन दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों पर कब लागू होता है जो माननीय मुख्‍यमंत्री जी के बंगले के साथ साथ राजभवन अन्‍य मंत्रियों के बंगले पर एवं आई ए एस आदि के बंगले पर उनके बंगले को लॉन हेज फूल पौधे से साथ साथ सब्‍जी एवं फल उगाकर उन्‍हें खुश करने में लगे रहते हैं।

     

Monday, 9 January 2017

शासन के आदेशों को नहीं मान रहा है उदद्यान विभाग

मध्‍यप्रदेश शासन ने हाल ही में दैनिक वेतन भोगी को स्‍थाई कर्मी में उन्‍नयन करने के आदेश जारी किये हैं। पूर्व में भी शासन ने दैनिक वेतन भोगी को जिन्‍हें कार्य करते 10 वर्ष एवं 20 वर्ष पूर्ण हो गये हैं उन्‍हें 1500 एवं 2500  विशेष वेतन देने के आदेश जारी किये थे साथ ही उन्‍हें 62 वर्ष्‍ में रिटायर करने एवं उपादान राशि रूपये 125000 देने के निर्देश जारी किये थे उद्यान विभाग ने दैनिक वेतन भोगियों को 62 वर्ष्‍ की आयु में रिटायर तो कर दिया परन्‍तु उन्‍हें आज तक उपादान राशि का भुगतान नहीं किया गया।
     सभी विभाग दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को स्‍थाई कर्मी में उन्‍नयन कर चुके है परन्‍तु उद्यान विभाग ने अभी तक दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी को स्‍थाईकर्मी में उन्‍नयन नहीं करा है।
     उद्यान विभाग अंतर्गत कार्यालय सहायक संचालक उदद्यान प्रमुख उद्यान भोपाल में लगभग 108 वर्ष्‍ 1988 से पूर्व से कार्यरत दैनिक वेतन भोगी कार्यरत हैं जिन्‍हें विशेष्‍ वेतन तो दिया जा रहा है परन्‍तु आज तक उनकी पी एफ कटौती चालू नहीं हुई है न ही उनका सर्विस रिकार्ड बनाया गया है पूर्व में इनकी संख्‍या 235 थी जिसमें से मरने और रिटायर होने के फलस्‍वरूप आज 108 बचे हैं इनमें से जो कार्य  पर रहते दिवंगत हो गये उन्‍हें विभाग द्वारा 2.00 लाख राशि दी गई परन्‍तु जिन्‍हें रिटायर किया गया उन्‍हें शासन के आदेश के बाद भी उपादान राशि का भुगतान नहीं किया गया है। कई करर्मचारी तो कोर्ट से जीत कर आये हैं और कोर्ट ने उन्‍हें उपादान राशि भुगतान के आदेश भी दिये हैं। पर उद्यान विभाग कोर्ट के आदेश न तो मान ही रहा है न ही अपील कर रहा है।